नई दिल्ली: ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को साकार करते हुए DRDO ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। DRDO की कानपुर स्थित प्रयोगशाला ने महज 8 महीनों में एक अत्याधुनिक नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमर मेम्ब्रेन तकनीक विकसित की है, जो खारे समुद्री पानी को पीने योग्य मीठे पानी में बदलने में सक्षम है। यह तकनीक खास तौर पर भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के जहाजों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
तटरक्षक बल के जहाजों पर हुआ सफल परीक्षण
यह स्वदेशी तकनीक ऑफशोर पेट्रोलिंग वेसल (OPV) पर लगाई गई, जहां इसके प्रारंभिक सुरक्षा और प्रदर्शन परीक्षण पूरी तरह सफल रहे। अब 500 घंटे की ऑपरेशनल टेस्टिंग के बाद इसे अंतिम स्वीकृति दी जाएगी। इस तकनीक के आने से समुद्री अभियानों पर निर्भरता कम होगी और जहाजों को लंबे समय तक संचालन में मदद मिलेगी।
जल संकट से निपटने में मिलेगी मदद
DRDO की यह तकनीक सिर्फ सैन्य जरूरतों तक सीमित नहीं है। समुद्री पानी में मौजूद क्लोराइड आयन सामान्य झिल्लियों को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन यह नई मेम्ब्रेन तकनीक इस प्रभाव से सुरक्षित है। यह उन क्षेत्रों में भी वरदान साबित हो सकती है, जहां पीने योग्य पानी की भारी किल्लत है। जल जीवन मिशन के तहत यह तकनीक भविष्य में आम नागरिकों तक भी पहुंचाई जा सकती है।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में नया कदम
DRDO पहले ही तेजस, अग्नि, पृथ्वी, पिनाका और आकाश जैसे कई स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा चुका है। अब जल संसाधनों की सुरक्षा के क्षेत्र में यह मेम्ब्रेन तकनीक भारत को आत्मनिर्भरता की ओर एक और ठोस कदम दिलाएगी।
यह नवाचार न सिर्फ तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि भारत की रणनीतिक और मानवीय जरूरतों के समाधान की दिशा में एक दूरदर्शी प्रयास भी है।