पोर,बड़ौदा:दो दिवसीय प्रवास पश्चात ज्योतिचरण का बड़ौदा से मंगल विहार पुज्यप्रवर ने बताई ज्ञानार्जन की महत्ता
अहिंसा यात्रा द्वारा नेपाल, भूटान सहित भारत के 23 राज्यों की पदयात्रा करने वाले, 55 हजार किलोमीटर पदयात्रा कर निरंतर चरैवेति–चरैवेति सूत्र के साथ वर्तमान में गुजरात धरा को पावन बना रहे युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज वडोदरा शहर से मंगल विहार हुआ। विहार मार्ग में जगह – जगह जन समुदाय शांतिदूत के दर्शन प्राप्त कर धन्यता की अनुभूति कर रहा था। इस दौरान स्थानीय स्वामी नारायण गुरुकुल के विद्यार्थी बच्चों को भी अणुव्रत अनुशास्ता ने सदाचार युक्त जीवन जीने का मार्गदर्शन प्रदान किया। बड़ौदा के दो दिवसीय प्रवास पश्चात आचार्यश्री का लगभग 09 किमी विहार कर पोर स्थित सी.सी. पटेल ग्लोबल स्कूल में पधारना हुआ।
मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए कहा – हमारे जीवन में शिक्षा का बड़ा महत्व है। विद्या प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी कितना प्रयत्न करते है, परिवार से दूर रहते है, विदेशों में भी जाते है। यह सब इसलिए क्योंकि ज्ञान का महत्व है। ज्ञान के दो रूप हो सकते हैं, लौकिक व लोकोत्तर। दोनों ही ज्ञान का अपने–अपने स्थान पर महत्व है। भौतिक क्षेत्र का ज्ञान आवश्यक है तो अध्यात्म का ज्ञान होना भी जरूरी है। ज्ञान प्राप्ति की मुख्य पांच बाधाएं है। पहला है अहंकार, व्यक्ति के भीतर अगर घमंड के भाव होंगे तो ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। अहंकार विकास का बाधक तत्व है। ज्ञान के प्रति नम्रता रहे, ज्ञान दाता के प्रति नम्रता रहे तो ज्ञान समुचित रूप से प्राप्त हो सकता है।
आचार्य श्री ने एक कहानी के माध्यम से आगे प्रेरणा देते हुए कहा कि दूसरी जो बढ़ा है वह है क्रोध। बात–बात में गुस्सा आना। ज्ञान दाता के प्रति आक्रोश के भाव आना भी ज्ञान प्राप्ति में बाधा है। तीसरी बाधा है प्रमाद व चौथी है आलस्य। जो अपना समय निद्रा व गपशप में व्यर्थ गंवा देता है, ज्ञानार्जन में आलस्य रखता है की आज नहीं कल कर लूंगा, बाद में पढ़ लूंगा। यह भी बधाएं है। और अंतिम है बीमारी, रोग। जिसके शरीर में व्याधि हो जाएं तो फिर वह ज्ञानार्जन में बाधक हैं जाती है। इसलिए व्यक्ति इन सबसे बचते हुए स्वाध्याय में परिश्रम करे। एकाग्रता, निष्ठा से अध्ययन करे तो ज्ञान प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।