बड़ौदा:पूज्यप्रवर ने किया जीवन के लिए आवश्यक तत्वों का विवेचन, रत्न समान है सुभाषित वाणी – युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
हजारों हजारों किलोमीटर पदयात्राएं कर जन मानस में करुणा, प्रेम, अहिंसा की सौरभ महकाने वाले युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अणुव्रत यात्रा के साथ दिन प्रतिदिन सूरत महानगर की ओर प्रगतिमान है । वैशाख माह की चढ़ती गर्मी में एक ओर जहां विहार के दौरान सूर्य निरंतर आकाश से आतप बरसा रहा होता है ऐसे में भी जनोद्धार हेतु शांतिदूत गुरुदेव अपने पारमार्थिक लक्ष्य के साथ निरंतर गतिशील रहते है । आज सुबह सूर्योदय की वेला में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने कंडारी के एमकेजीएम स्कूल से मंगल विहार किया । विद्यालय के प्रिंसिपल सहित प्रबंधकों ने गुरुदेव के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए पुनः जल्दी पधारने का निवेदन किया । तत्पश्चात आचार्य प्रवर यात्रायित हुए । मार्ग में कई स्थानों पर अणुव्रत रथ के निकट स्थानीय ग्रामीणों ने शांतिदूत को वंदन किया । गुरुदेव की प्रेरणा से सभी ने नशामुक्ति सहित सद्भावना, प्रमाणिकता के संकल्पों को स्वीकार किया । लगभग 13.5 किमी विहार कर आचार्यश्री देथाण की प्राथमिक शाला में प्रवास हेतु पधारे । स्थानीय प्रिंसिपल से पुज्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया ।
मंगल देशना देते हुए महातपस्वी गुरुदेव ने कहा– इस संसार में सामान्यतः व्यक्ति के जीने के लिए हवा, पानी और अन्न इन तीनों की अपेक्षा होती है। इन तीनों में जीने के लिए हवा का महत्व सबसे ज्यादा होता है । क्योंकि अन्न, पानी ना भी मिले किंतु हवा के बिना थोड़ी देर भी जीवन का टिकना मुश्किल है । इसके बाद माध्यम कोटि में पानी का और फिर उसके अन्न का। पानी को रत्न माना गया है । भौतिक रत्न अनेक प्रकार के हो सकते है किंतु शास्त्रों में तीन विशेष प्रकार के रत्नों का उल्लेख मिलता है। जल, अन्न व सुभाषित वाणी को रत्न की कोटि में माना गया है। हमारे जीवन में सुभाषित, शास्त्र वाणी का भी बहुत बड़ा महत्व होता है। ज्ञानपूर्ण वाणी जीवन में उतर जाएं तो जीवन में बदलाव आ सकता है।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि हवा, पानी व अन्न यह प्रथम कोटि की आवश्यकता हैं। इनके बाद की है– मकान व वस्त्र । फिर नम्बर तीन में शिक्षा व चिकित्सा आदि की भी अपेक्षा हो सकती है । जरूरत की चीज तो खानी पड़ती है पर व्यक्ति अनावश्यक चीजों के प्रयोग से बचने का प्रयास करते रहे । जैसे शराब, नशीली चीजें व मांसाहार आदि ये अनावश्यक भी है और अभोज्य कोटि के है इनसे बचें । अणुव्रत हमें संयम से जीना सिखाता है। व्यक्ति अणुव्रत के महत्व को जाने और व्रतों द्वारा जीवन को संवारने का प्रयास करे।