राजस्थान में ओबीसी को 6 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण देकर सीएम अशोक गहलोत की रणनीति का बड़ा हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस फैसले से ओबीसी की करीब 82 जातियों का समर्थन मिलेगा। हालांकि, कुछ लोग मानकर चल रहे हैं कि सीएम अशोक गहलोत का आरक्षण वाला दांव उलट भी पड़ सकता है। कांग्रेस के लिए चुनाव से ठीक पहले यह बड़ा मौका हो सकता है। हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं है। बीजेपी का कहना है कि सीएम गहलोत को चुनाव के समय ही आरक्षण क्यों याद आता है। यह पूरी तरह के स अव्यहारिक है। सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान की राजनीति में तमाम सियासी मुद्दे होते हुए भी बात अब आरक्षण पर जा टिकी है। अब देखना यह होगा कि सीएम गहलोत को फायदा मिलेगा या फिर बीजेपी को।
बीजेपी ने बताया सिर्फ सियासी दांव
बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया इसे गहलोत का सिर्फ सियासी दांव बता रहे हैं। पूनिया ने कहा कि भारत के संविधान में देश के सभी नागरिकों को उनकी योग्यता और क्षमता के आधार पर अवसर देने की बात कही गई है। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनाव के वक्त ही यह आरक्षण क्यों याद आता है। पूनिया कहना है कि सीएम गहलोत की नीति और नीयत साफ होती तो इस तरीके की चीजे करने से पहले चर्चा की जा सकती थी। इन सभी चीजों की कानूनी और संवैधानिक मर्यादाएं क्या हैं, उसका भी ख्याल रखने की आवश्यकता है। सीएम गहलोत अब मुझे लगता है मुख्यमंत्री अब जो घोषणाएं कर रहे हैं और जिस तरीके की बातें कर रहे हैं, ये सब लोकलुभावन चीजें हैं जो केवल मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए हैं।
ओबीसी 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा
उल्लेखनीय है कि ओबीसी को वर्तमान में 21 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है। हाल ही में बांसवाड़ा के मानगढ धाम पर आयोजित कांग्रेस की सभा में सीएम गहलोत ने ओबीसी आरक्षण की सीमा को 21 से बढाकर 27 फीसदी करने का ऐलान किया था। सीएम अशोक गहलोत के इस ऐलान का आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ा असर देखने को मिल सकता है। प्रदेश की 55 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग की है। सरकारी नौकरियों और राजनीति में आरक्षण का लाभ मिलने के कारण यह वर्ग कांग्रेस का समर्थन कर सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी आशंकित भी है। बीजेपी नेताओं का दबी जुबान में कहना है कि आरक्षण के दांव से कांग्रेस को चुनाव में फायदा भी मिल सकता है। क्योंकि यह लंबे समय प्रमुख मांग रही है। ओबीसी में करीब 82 जातियां शामिल है। इन जातियों की मांग को ध्यान में रखकर ही यह घोषणा की गई है।