डेस्क:तमिलनाडु के राज्य बजट में रुपये के चिह्न को हटाने पर विवाद छिड़ गया है। अब इस डिजाइन को बनाने वाले डी उदय कुमार ने भी मामले पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस फैसले का कारण बताने के काम राज्य सरकार पर ही छोड़ दिया है। खास बात है कि कुमार के पिता DMK यानी द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम से पूर्व में विधायक रह चुके हैं। रुपये के चिह्न को हटाने का फैसला लेने वाले तमिलनाडु मुख्यमंत्री एमके स्टालिन इसी पार्टी के प्रमुख हैं।
एनडीटीवी से बातचीत में कुमार ने सरकार पर सवाल उठाने से इनकार कर दिया है। साथ ही उन्होंने अपनी रचना पर गर्व होने की बात कही है। साथ ही साफ किया है कि तमिलनाडु सरकार के इस फैसले से उनपर कोई असर नहीं पड़ा है। उन्होंने इसे अपमान के तौर पर भी लेने से मना कर दिया है।
उन्होंने कहा, ‘हमारी सभी डिजाइन सफल नहीं होती। आपको आलोचना का भी सामना करना पड़ता है। एक डिजाइनर के तौर पर आप हमेशा उन्हें सकारात्मकता से लेते हैं, उनसे सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं। मुझे नहीं लगता कि यह फैसला मेरे काम के प्रति अनादर है या उसकी उपेक्षा है।’
उन्होंने कहा, ‘मैं उस वक्त सिर्फ अपने काम को लेकर चिंतित था। मैं प्रतियोगिता को समझने और उसे पूरा करने की कोशिश कर रहा था। मैं चाहता था कि कुछ ऐसा तैयार करूं, जो सर्वभौमिक हो और सरल है, जिसका असर हो और कोई मतलब निकले। मैंने कभी नहीं सोचा था कि आज ऐसा (विवाद) कुछ हो जाएगा।’
वह अपने पिता के डीएमके के पूर्व विधायक होने के महज एक संयोग मानते हैं। कुमार के पिता एन धर्मलिंगम DMK के विधायक रह चुके हैं। कुमार ने बताया कि वह उनके जन्म होने से पहले एमएलए बने थे।
क्या है मामला
गुरुवार को सीएम स्टालिन की तरफ से तमिलनाडु के बजट 2025-26 से जुड़ा एक वीडियो शेयर किया गया था। इस वीडियो में नजर आ रहा था कि राज्य सरकार ने बजट के दस्तावेजों में से भारतीय रुपये का चिह्न हटा दिया था और उसकी जगह तमिल अक्षर ‘रु’ को शामिल कर लिया था। रविवार को तमिलनाडु का बजट पेश होने वाला है।
दरअसल, राज्य सरकार ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया, जब केंद्र के साथ उसकी तीन भाषा नीति को लेकर तनातनी जारी है। केंद्र सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि जब तक राज्य सरकार तीन-भाषा नीति के क्रियान्वयन वाली नीति को स्वीकार नहीं करती, तब तक वह समग्र शिक्षा योजना के तहत राज्य को मिलने वाली 2,152 करोड़ रुपये की धनराशि जारी नहीं करेगी। राज्य सरकार इसका लगातार विरोध कर रही है और आरोप लगा रही है कि यह हिंदी और संस्कृत को थोपने का प्रयास है।