मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में भी वित्तीय अनुशासन की अपनी परिपाटी को कायम रखा है। अस्थिर वैश्विक और घरेलू माहौल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संतुलन साधने का प्रयास किया है। बड़ी रेवड़ियों की घोषणा से परहेज करते हुए, उन्होंने आवश्यक क्षेत्रों में सरकारी खजाने का विवेकपूर्ण उपयोग किया।
स्वस्थ राजस्व संग्रह और भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त अतिरिक्त लाभांश का उपयोग सरकार ने राजकोषीय घाटे को घटाने और आवश्यक क्षेत्रों में खर्च करने के लिए किया। सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कौशल विकास, रोजगार सृजन, एमएसएमई, शहरी आवास, और महंगाई काबू करने पर ध्यान केंद्रित किया। ये खर्च भले ही बड़े लगें, लेकिन वे उत्पादक हैं और दीर्घकाल में लाभकारी होंगे।
कौशल विकास से रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और उद्योगों को आवश्यक कर्मी मिलते हैं। शहरी आवास निर्माण से रोजगार सृजन होगा और आवासीय आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। इस प्रकार के क़दमों से आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी बढ़ती है, जिससे आर्थिकी को गति मिलती है।
विभिन्न मदों में खर्च बढ़ाने के बावजूद, सरकार राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.9 प्रतिशत तक लाने में सफल रही। यह अंतरिम बजट के 5.1 प्रतिशत के अनुमान से बेहतर है। वित्त मंत्री ने अगले वित्त वर्ष में घाटे को 4.5 प्रतिशत तक लाने और उधारी को घटाने का एलान किया।
राजकोषीय घाटा बढ़ने का अर्थ बाहरी उधारी पर निर्भरता बढ़ना है, जिससे ब्याज अदायगी पर खर्च बढ़ता है और वित्तीय संसाधनों की किल्लत होती है। इसलिए, इसे काबू करना आवश्यक है और मोदी सरकार इस मोर्चे पर खरी उतरी है।
सरकार ने पूंजीगत व्यय को बढ़ाए रखने का सिलसिला कायम रखा है। बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर देकर, सरकार ने राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के साथ समन्वित प्रयास किए हैं। बुनियादी ढांचे का विकास कई स्तरों पर लाभकारी होता है, जिससे अनुकूल कारोबारी परिवेश तैयार होता है।
बजट में निजी क्षेत्र को सहारा देने के लिए कई वस्तुओं पर ड्यूटी घटाई गई है, जिससे मोबाइल फोन और चार्जर का निर्माण किफायती होगा। मूल्यवान धातुओं और अन्य वस्तुओं पर ड्यूटी घटने से उनके दाम भी कम होंगे, जो वर्तमान परिस्थितियों में आवश्यक है।
मैन्युफैक्चरिंग में एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी योजना और मुद्रा लोन का दायरा बढ़ाना सराहनीय कदम हैं। कौशल विकास और इंटर्नशिप से जुड़ी पहल रोजगार सृजन का विस्तार करेंगी और उद्यमों को सहारा देंगी। अतिरिक्त कर्मियों की भर्ती पर 3,000 रुपये का प्रोत्साहन नई नौकरियों को बढ़ावा देगा।
महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने अपनी प्राथमिकता सूची में रखा है। महंगाई की स्थिति मौद्रिक नीतियों के बजाय आपूर्ति शृंखला से जुड़ी होती है, इसलिए सरकार ने आपूर्ति शृंखला सुधारने के लिए कदम उठाए हैं। जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित फसलों की नई किस्में पेश की गई हैं, जिससे फसल नुकसान कम होगा और आपूर्ति स्थिर रहेगी। कृषि उपज के भंडारण के लिए भी कदम उठाए गए हैं।
निजी आयकर की दरों में मामूली फेरबदल किया गया है, जिससे वेतनभोगी वर्ग में असंतुष्टि हो सकती है। पूंजी बाजार में करों के स्तर पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिली हैं, लेकिन इसे सुसंगत करने की दिशा में कदम माना जा सकता है। एंजल टैक्स की विदाई स्वागतयोग्य है।
चुनावी झटकों के बाद बजट लोकलुभावन हो सकता था, लेकिन सरकार ने इससे किनारा किया। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए वित्तीय अनुशासन बनाए रखना आवश्यक है। सरकार, बैंकों, और उद्योगों की स्थिति बेहतर है, लेकिन अस्थिर वैश्विक माहौल में सुरक्षा बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
सरकार की प्रमुख बजट प्राथमिकताएं:
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देना
- कौशल विकास एवं रोजगार सृजन
- एमएसएमई और मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन
- शहरी आवास समस्या का समाधान
- महंगाई पर अंकुश लगाना
- बुनियादी ढांचे का विकास
- राजकोषीय घाटा कम करना
सरकार का यह बजट विकसित भारत के लक्ष्य को साधने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें वित्तीय अनुशासन और संतुलन पर जोर दिया गया है।