भुज, कच्छ:कच्छी रण की प्रख्यात धरा जो अपने नमक कि खेती के कारण जानी जाती है युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुपावन प्रवास से यहां के वासियों को मानों अध्यात्म अमृत का रसास्वादन करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है। 31 जनवरी को जैन। श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपनी धवल सेना संग भुज शहर में मंगल प्रवेश किया। एक ओर रणोत्सव की भूमि पर 161 वें मर्यादा महोत्सव से तेरापंथ के अनुशासन एवं एक आचार एक विचार की गूंज उठी वही भव्य दीक्षा समारोह में कच्छ का लाल केविन संघवी संयम स्वीकार कर मुनि कैवल्य कुमार के रूप में अध्यात्म के पथ पर गतिमान हो गया। आचार्य श्री के प्रवास से न केवल जैन अपितु जैनेतर लोगों ने भी सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के गुणों से स्वयं को भावित किया। देश के कोने कोने से श्रद्धालु भुज में आचार्यश्री की सन्निधि में धार्मिक आराधना करने हेतु उपस्थित हुए। भुज वासियों के लिए ये प्रवास मानों देखते ही देखते समाप्ति की घड़ी पर पहुंच गया है। किन्तु इस प्रवास का क्षेत्र वासियों ने लाभ उठाने में कोई कमी नहीं रखी। मर्यादा महोत्सव के समय में स्मृतिवन का स्थल हो या शहर का प्रवास स्थल दोसा भाई धर्मशाला हो, प्रातः वृहद मंगलपाठ से रात्रि के चरण स्पर्श तक प्रवास स्थल पर श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता। कल 17 फरवरी को गुरुदेव भुज क्षेत्र को पावन बना गांधीधाम हेतु प्रस्थान कराएंगे। इस बीच क्षेत्र के लिए मानों यह स्वर्णिम अवसर आया है कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा के उपक्रम आचार्य महाश्रमण इंटरनेशनल स्कूल का शिलान्यास समारोह भी लायंस चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रदान की गई भूमि पर होने जा रहा है। प्रातः हरिपर में गुरुदेव के सान्निध्य में उदयोत्सव एवं शिलान्यास का कार्यक्रम समायोज्य है।
कच्छी पूज समवसरण में धर्म देशना देते हुए गुरुदेव ने फरमाया – हर किसी के जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। हमारा परम लक्ष्य यह है कि पूर्व कर्म का क्षय करने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। लक्ष्य से विपरीत कार्य नहीं करने चाहिए। भोजन जीवन के लिए आवश्यक है। साधु भोजन करते है और गृहस्थ भी भोजन करते है। किन्तु साधु का भोजन स्वाद के लिए नहीं अपितु साधना के लिए होता है, कर्मों के निर्जरण के लिए होता है। साधु को न तो भोजन पकाना होता ना स्वयं के लिए औरों से पकवाना होता है। अलग अलग घरों में माधुकरी वृत्ति की तरह गोचरी कर साधु भिक्षा की प्राप्ति करते है। मुंह से स्वाद भी लिया जा सकता है तो विवाद भी मुंह से किया जा सकता है। स्वाद में आनंद नहीं होना चाहिए ये तो इंद्रियों का विषय भोग होता है। इसी प्रकार विवाद नहीं करना चाहिए संवाद भले करले। दुर्भावना युक्त विवाद नहीं होना चाहिए। सामने वाले की बात अगर अच्छी लगे तो कम से कम मन में तो अनुमोदना करे।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि ऊंचा लक्ष्य बना लिया फिर इंद्रिय विषयों के आकर्षण में नहीं जाना चाहिए। इनकी उपयोगिता के हिसाब से उपयोग करना अलग बात है पर आसक्ति में नहीं जाना। इस जीवन का मोक्ष परम लक्ष्य है। क्योंकि इस जीवन में जो ऊंची साधना हो सकती है वह अन्य गति में नहीं संभव। मनुष्य भव में ही धर्म की उत्कर्ष साधना हो सकती है। यह साधुत्व की साधना चिंतामणि रत्न के समान है। मानव जीवन का अध्यात्म की दृष्टि से व्यक्ति बढ़िया उपयोग करे। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी जितना धर्म कर सकें करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
भुज प्रवास के संदर्भ में गुरुदेव ने कहा कि मर्यादा महोत्सव एवं दीक्षा समारोह से युक्त यह प्रवास हुआ। इतना श्रावक समाज का श्रम, समय के रूप में योगदान रहा। यह महोत्सव का समारोह इतने साधु–साध्वियों, समणियों–मुमुक्षु बहनों का समागमन हुआ। सभा आदि अन्य संस्थाएं भी है सभी अच्छा कार्य करते रहे। भुज में खूब धार्मिक चेतना बनी रहे।
अभिव्यक्ति के क्रम में मुनि अनंत कुमार जी ने अपने विचार रखे। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कीर्तिभाई संघवी ने टीम सहित गुरुदेव के प्रति मंगल भावना व्यक्त की। सभा के अध्यक्ष श्री वाडी भाई, स्वागताध्यक्ष श्री नरेंद्र भाई, श्री चंदूभाई संघवी, श्री शांतिलाल बागरेचा, श्री अरविंद भाई दोषी, श्री महेश गांधी, तेरापंथ महिला मंडल से श्रीमती अमिता मेहता, लोहाणा समाज से डॉ. मुकेश, बेटी तेरापंथ की ओर से श्रीमती प्रतिभा जी, भुज सात संघ के अध्यक्ष श्री स्मित भाई झवेरी, जिला शिक्षण अधिकारी श्री भूपेंद्र सिंह बाघेला आदि ने अपनी भावभीव्यक्ति दी।
इस अवसर पर तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने प्रस्तुति दी।
सूरत से समागत श्री गिरीश भाई वकील ने ‘ आगम बुक ‘ गुरू चरणों में भेंट की।
कल आचार्य प्रवर दोसाभाई धर्मशाला से विहार कर हरिपर देवराज फार्म में प्रवास हेतु पधारेंगे जहां से सायं विहार कर मिर्जापुर कुमारशाला में रात्रिप्रवास संभावित है।