नई दिल्ली: केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को करीब दो घंटे तक सुनवाई हुई। इस कानून के खिलाफ देशभर से 100 से अधिक याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अदालत ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, लेकिन फिलहाल कानून के अमल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी और सीयू सिंह ने दलीलें पेश कीं।
हिंसा पर जताई चिंता
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही हिंसा पर चिंता जताई। इस पर SG तुषार मेहता ने कहा कि यह नहीं दिखना चाहिए कि हिंसा के जरिए दबाव बनाया जा रहा है।
गुरुवार दोपहर 2 बजे फिर होगी सुनवाई
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे तय की है। अब तक की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने तीन प्रमुख मुद्दों पर आपत्तियां दर्ज की हैं:
1. वक्फ बनाने का अधिकार सिर्फ मुसलमानों को क्यों?
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह अनुचित है कि केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है, जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो। उन्होंने कहा, “राज्य यह कैसे तय कर सकता है कि कोई मुसलमान है या नहीं? यह व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप है।”
2. पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन पर आपत्ति
सिब्बल ने कहा कि कई वक्फ संपत्तियां 300-400 साल पुरानी हैं। “आज रजिस्ट्रेशन डीड मांगना व्यावहारिक नहीं है,” उन्होंने कहा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सवाल उठाया और पूछा कि 14वीं या 16वीं शताब्दी की मस्जिदों के पास क्या रजिस्ट्रेशन डीड हो सकती है?
SG मेहता ने जवाब में कहा कि रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता 1995 के वक्फ कानून में भी थी और इसमें कोई नया प्रावधान नहीं है।
3. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल करने पर विवाद
याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई कि नए संशोधन में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल करने का प्रावधान है। सिब्बल ने कहा, “आर्टिकल 26 धार्मिक संस्थाओं को अपने प्रबंधन का अधिकार देता है। तिरुपति ट्रस्ट में क्या कोई गैर-हिंदू सदस्य होता है?”
जस्टिस खन्ना और जस्टिस कुमार ने केंद्र से पूछा कि अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं, तो क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने की अनुमति देगी?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि वक्फ संपत्ति होने या न होने का निर्णय अदालत के माध्यम से ही तय किया जाना चाहिए। अब सभी की नजर गुरुवार की सुनवाई पर टिकी है, जहां अदालत इस पर और गहराई से विचार करेगी।