जिस भारत ने तुम्हें मिट्टी से उठाकर मीलों ऊंचाई दी, जो देश तुम्हारे हर छक्के पर ताली बजाकर तुम्हें हीरो बना बैठा, जिसने तुम्हारे लिए संसद का द्वार भी खोल दिया — उसी भारत की पुकार पर आज तुमने चुप्पी ओढ़ ली, युसुफ! क्रिकेट की पिच पर विजेता बनने वाला वो पठान, आज जब राष्ट्र की असल पिच पर खेलने का समय आया, तो उसने बैट नहीं उठाया — उसने सिर झुका लिया।
क्या तुम्हारे भीतर वो हिम्मत नहीं बची, जो तुमने कभी गेंदबाज़ों को मैदान में दिखायी थी?
भारत ने तुम्हें एक नाम दिया, पहचान दी, सर झुकाने नहीं, सिर ऊंचा करने की ताक़त दी। पर जब पहली बार देश ने कहा — “अब मैदान राजनीति का नहीं, राष्ट्र का है, चलो हमारे प्रतिनिधि बनो”, तुमने कहा — “मैं उपलब्ध नहीं हूँ।” और वजह दी — “पार्टी ने कहा है।”
क्या ममता बनर्जी की पार्टी, भारत माता से बड़ी हो गई है?
हम यह सवाल इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि तुम्हारे इस निर्णय ने हमारे भरोसे की बुनियाद हिला दी है। और यह पहली बार नहीं है। मुर्शिदाबाद में जब हिंदू घरों में आग लगी थी, तब तुमने कैमरे के सामने चाय की चुस्की लेते हुए मुस्कान बिखेरी थी — ठीक वैसे जैसे पाकिस्तान में बैठे वो लोग बेशर्मी से कैमरे के सामने चाय पीते हैं, जो आतंकवादियों को हीरो मानते हैं।
तुम्हारा ये ‘सब शांत है’ वाला पोस्ट उस दिन भी भारत की आत्मा पर तमाचा था। और आज, जब भारत ने आतंक के खिलाफ निर्णायक स्वर गूंजाया, जब 28 भारतीयों की शहादत का जवाब देने के बाद तुम्हें एक प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया — तुमने फिर चुप्पी का कंबल ओढ़ लिया।
तुम्हें क्या डर था युसुफ?
क्या वोट बैंक नाराज़ हो जाता? क्या ममता दीदी असहज हो जातीं? क्या तुम्हारा निर्वाचन क्षेत्र तुम्हें खारिज कर देता?
अगर ऐसा था, तो फिर संसद में क्यों आए थे युसुफ? क्रिकेट में भारत का झंडा क्यों उठाया था?
गौतम गंभीर ने कभी भी राष्ट्र के सवाल पर समझौता नहीं किया। शिखर धवन, जिन्होंने केवल बल्ले से ही नहीं, बोलकर भी भारत के साथ खड़े होने का साहस दिखाया। ओवैसी, उमर अब्दुल्ला, शशि थरूर — विचारधारा चाहे कुछ भी हो, पर जब बात भारत की प्रतिष्ठा की आई, तो सबने एकजुटता दिखाई।
और तुम?
तुम, जिन्हें हम अपनी संतान मानते थे, आज जब राष्ट्र की अस्मिता की बात आई तो तुमने ममता की पार्टी का झंडा तिरंगे से ऊंचा कर दिया?
शर्मनाक है युसुफ!
भारत ने कभी तुम्हारे मजहब को नहीं देखा, कभी तुम्हारे पिछड़ेपन को नहीं टोका। भारत ने केवल तुम्हारी प्रतिभा को पहचाना, और फिर उसे सिर पर बैठा लिया। तुम केवल एक खिलाड़ी नहीं थे — तुम हर हिंदुस्तानी के दिल में उम्मीद थे।
लेकिन आज तुमने उस उम्मीद को शर्मिंदा कर दिया।
यह कोई IPL मैच नहीं था जिसमें तुमने कहा — “मुझे मन नहीं है, मैं नहीं खेलूंगा।” यह भारत की गरिमा का प्रश्न था। यह अवसर था दुनिया को यह दिखाने का कि भारत आतंक के विरुद्ध एकजुट है।
और तुमने क्या किया?
तुमने पार्टी की अनुमति के बहाने, अपने कंधे से तिरंगा उतार दिया।
तुमने देश के सामने नहीं — बल्कि इतिहास के सामने खुद को छोटा कर लिया।
आज जो पीड़ा हम महसूस कर रहे हैं, वह इसलिए नहीं कि तुमने नहीं गए। वह इसलिए है कि तुम जा सकते थे, तुम्हें जाना चाहिए था — पर तुम नहीं गए।
शायद अभी भी समय है।
तुम्हारे भीतर जो भारत का पुत्र कहीं दबा हुआ है, उसे पुकारो। अपने क्रिकेट के दिनों को याद करो — जब एक छक्के पर पूरा भारत झूम उठता था। तिरंगा तुम्हारे कंधे पर होता था,आज वो तिरंगा पूछ रहा है — “क्या मैं तुम्हारे लिए केवल एक मैच की पोशाक था?”
युसुफ, यह आखिरी अवसर नहीं है। लेकिन यह अवसर निर्णायक था — और तुम चूक गए।
विश्वासो हि महाबन्धः स्नेहपाशसमन्वितः।
तं छित्त्वा यो पलायेत्, स वै पापात्पराङ्मुखः॥
(भावार्थ: विश्वास एक महान बंधन है, जो स्नेह की डोर से जुड़ा होता है। जो इस बंधन को तोड़कर भागता है, वह पाप की दिशा में भागता है।)
सुन्दर, साहसिक