‘ऑपरेशन सिंदूर’ की वीर नायिका कर्नल सोफिया कुरैशी पर मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की टिप्पणी केवल एक व्यक्ति की अशोभनीय गिरावट नहीं, बल्कि राजनीतिक संस्कृति के क्षरण का संकेत है। जिस अधिकारी पर आज पूरा देश गर्व कर रहा है, उसके विरुद्ध की गई अमर्यादित टिप्पणी न केवल सेना, बल्कि समावेशी भारत की आत्मा पर हमला है।
हाई कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना पड़ा—यह दर्शाता है कि संवैधानिक संस्थाएं अभी भी जागरूक हैं। किंतु मूल प्रश्न यह है कि भाजपा नेतृत्व स्वयं पहले क्यों नहीं बोला? क्या यही उस ‘नए भारत’ की कल्पना है, जहाँ मंत्रीगण एक महिला अधिकारी की धार्मिक पहचान पर ओछी टिप्पणी करते हैं और पार्टी चुप रहती है?
विडंबना यह है कि जिन मुद्दों पर कल तक भाजपा विपक्ष को घेरती थी—अशोभनीय आचरण, स्त्री विरोधी भाषा, ट्रोलिंग—आज वही बीमारियाँ उसके अपने कई नेताओं में दिखने लगी हैं। और सोशल मीडिया पर पार्टी के कुछ समर्थक इन विकृतियों को और बढ़ा रहे हैं।
भाजपा को यह समझना होगा कि सत्ता टिकाऊ होती है जब वह नैतिक आधार पर टिकी हो। महज़ बहुमत और चुनावी मशीनरी से चलने वाली राजनीति देर-सबेर लोगों से कट जाती है। कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई टिप्पणी से उपजा जनाक्रोश केवल उनके लिए नहीं, बल्कि एक संकल्प का प्रतीक है—कि भारत का नागरिक अब मौन नहीं रहेगा।
जय माँ भारती