कृष्ण और सुदामा की मित्रता के बारे में भला कौन नहीं जानता होगा। आज भी जब कभी पक्की दोस्ती की बात होती है तो सबसे पहले कृष्ण और सुदामा नाम ही जेहन में आता है। ऐसे में आज हम आपको कृष्ण और सुदामा की उस कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें पलक झपकाते ही दो मुट्ठी चावल धन-संपत्ति में तब्दील हो गया था। तो चलिए जानते हैं कृष्ण और सुदामा की उस कथा के बारे में जिसमें मित्रता को सबसे ऊंचे पद पर रखा गया है।
सुदामा थे कृष्ण के परम मित्र
वैसे तो श्री कृष्ण के बहुत से मित्र थे पर सुदामा उनमें से सबसे प्रिय थे। कृष्ण और सुदामा ने बचपन में एक-दूसरे को वचन दिया था कि हममे से कोई भी संकट में होगा तो दूसरा उसकी सहायता करेगा। इस वचन को भगवान श्री कृष्ण ने बखूबी निभाया भी था। बड़े होने पर भगवान कृष्ण द्वारका के राजा बन गए और सुदामा बहुत गरीब रह गए। सुदामा इतनी गरीबी से जूझ रहे थे कि अपने परिवार का पेट भी नहीं पाल पा रहे थे। तब उनकी पत्नी सुशीला ने उन्हें कृष्ण जी की मदद मांगने को कहा। इसके बाद सुदामा हिचकिचाते हुए कृष्ण के द्वार पहुंचे।
द्वारपालों ने उड़ाया गरीबी का मजाक
द्वारका के द्वारपालों ने सुदामा की गरीबी का मजाक उड़ाया और पूछा यहां क्यों आए हो। तब सुदामा ने कहा कि कृष्ण मेरे मित्र हैं। इस बात पर द्वारपालों को भरोसा तो नहीं हुआ पर उन्होंने कृष्ण को जाकर ये बात बताई। तब कृष्ण खुद द्वार पर दौड़े-दौड़े आए और सुदामा को अपने गले से लगा लिया। कृष्ण उन्हें अपने साथ महल में ले गए और सिंहासन पर बैठा दिया। फिर कृष्ण ने आंसुओं से सुदामा के पैर धोए। सभ में मौजूद सभी लोग एक गरीब को सिंहासन पर बैठा देख चकित रह गए तब कृष्ण ने सभी को बताया कि सुदामा उनके परम मित्र हैं।
कृष्ण ने नाम की दो लोक की संपत्ति
कृष्ण ने जब सुदामा से महल तक आने का कारण पूछा तो सुदामा की आंखों में आंसू आ गए। कृष्ण बोले क्या आज भी तुम बचपन की तरह मेरे हिस्से के चावल अपनी पोटली में लाए हो। जिसके बाद कृष्ण ने उनकी पोटली से दो मुट्ठी चावल खाकर दो लोक की संपत्ति सुदामा को दे दी।