नई दिल्ली:हरियाणा के नूंह जिले में, जहां पिछले दिनों साम्प्रदायिक हिंसा भड़की, वहां मुस्लिम आबादी करीब 70 फीसदी है। इसके अलावा अगल-बगल के जिलों में भी मुस्लिम आबादी अच्छी संख्या में है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, नूंह के पड़ोसी जिलों पलवल में 20 फीसदी, फरीदाबाद में 8.93 फीसदी, गुरुग्राम में 4.68 फीसदी और रेवाड़ी में 0.63 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। नूंह में सबसे ज्यादा मेव मुसलमान हैं।
हमेशा मुस्लिम उम्मीदवार की ही जीत
नूंह, जिसे पहले मेवात जिला कहा जाता था, उसके अंदर तीन विधानसभा क्षेत्र (नूंह, फिरोजपुर झिरका और पुन्हाना) आते हैं। इन तीनों सीटों की खास बात ये है कि इन सीटों पर जब से चुनाव होने शुरू हुए हैं, तब से मुस्लिम प्रत्याशियों को ही जीत मिलती रही है। इन सीटों पर कांग्रेस और इनेलो के बीच ही मुख्य मुकाबला होता रहा है। 2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में नूंह जिले की सभी तीन सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। उससे पहले 2014 में दो सीट पर इनेलो और एक पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी। बाद में ये तीनों बीजेपी में शामिल हो गए थे लेकिन 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
मेवात की पांच सीटों पर मुस्लिम ही किंगमेकर
मेवात क्षेत्र में मुस्लिमों की अधिक संख्या नूंह की तीनों सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत का बड़ा कारण है। इनके अलावा मेवात इलाके की सोहना और हथीन सीट पर भी मुस्लिम वोटर किंगमेकर की भूमिका में रहे हैं। वैसे तो हरियाणा में मुस्लिम मतदाता 7.2 फीसदी ही हैं, लेकिन मेवात इलाके में करीब 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है। मेवात क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं।
पिछड़ा इलाका है मेवात
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, मेवात इलाका विभिन्न मापदंडों पर देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ सुधार देखा गया है। पिछले पांच वर्षों में, मेव-मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में कई सड़क परियोजनाएं, स्कूल, नहरें और जल परियोजनाएं सामने आई हैं। नौकरियों के भी कुछ अवसर बढ़े हैं। बीजेपी यहां घुसपैठ की कोशिश में लगी हौ और अपना चुनावी खाता खुलने का इंतजार कर रही है। 2019 में बीजेपी ने नूंह के जीते हुए तीनों मुस्लिम विधायकों को अपने साथ कर लिया था लेकिन जनता ने उन्हें बतौर भाजपा उम्मीदवार खारिज कर दिया।
दंगों से बिगड़ सकते हैं सियासी समीकरण
अगले साल लोकसभा चुनावें के अलावा हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। हालिया दंगों से धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को बल मिल सकता है। इसके अलावा सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर हावी हो सकता है। दूसरी तरफ हिन्दू वोटरों के भी लामबंद होने की संभावना है। लिहाजा, सभी दल अपने-अपने हिसाब से उसका नफा-नुकसान देख रहे हैं।
राजस्थान पर भी असर
इस साल के अंत तक हरियाणा खासकर मेवात इलाके से सटे राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान में ही मेवात इलाके का असली फैलाव है। भरपुर और अलवर जिले इसी मेवात के तहत आते हैं, जहां से विधानसभा की कुल 18 सीटें आती हैं। यहां कांग्रेस, बीजेपी के साथ-साथ मायावती की बसपा भी अच्छा प्रदर्शन करती रही है। 2018 के विधानसभा चुनावों में भरतपुर की सात सीटों में से एक पर भी बीजेपी को जीत हासिल नहीं हुई थी। कांग्रेस ने चार, बसपा ने दो और रालोद ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। अलवर में भी 11 सीटों में से भाजपा को सिर्फ दो पर ही जीत मिल सकी थी, जबकि कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनके अलावा दो-दो सीटों पर निर्दलीय और बसपा उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।
लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार, मेवात में 70 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले मुसलमानों ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दिया था। मेवात इलाके में केवल 14 प्रतिशत मुसलमानों ने ही भाजपा को वोट दिया था। हालांकि, 2014 में यह केवल 5 प्रतिशत ही था, जो पांच साल में बढ़कर 14 फीसदी हो गया था। सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक ऐसी स्थिति तब आी थी, जब कोई बड़ी सांप्रदायिक हिंसा की घटना नहीं हुई थी लेकिन अब नूंह हिंसा के बाद राजस्थान और हरियाणा दोनों ही राज्यों में सियासी समीकरण बदल सकते हैं।