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Home राज्य-शहर पश्चिम बंगाल

ममता बनर्जी क्यों कर रहीं सीएए का विरोध, बंगाल की इन आठ सीटों के गणित से समझें भाजपा का दांव

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
March 12, 2024
in पश्चिम बंगाल, राजनीतिक
Reading Time: 1 min read
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बंगाल का नाम बदलो, ममता ने फिर से उठा दी मांग; बताया क्या रख दिया जाए

File Photo

कोलकाता:चार साल पहले संसद से पास हुआ नागरिकता संशोधन कानून सोमवार को लागू कर दिया गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया है और CAA को चुनावी हथकंडा करार दिया है। उन्होंने कहा, “CAA भाजपा द्वारा दिखावा करने का एक हथकंडा है और वास्तव में मतदान से ठीक पहले यह एक लॉलीपॉप है।” सोमवार को उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर CAA किसी भी समुदाय या लोगों के साथ भेदभाव करता है तो वह पश्चिम बंगाल में इसके कार्यान्वयन का विरोध करेंगी।

उन्होंने देश में संसदीय चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार के इस कदम पर भी सवाल उठाया। ऐसे में सवाल उठता है कि नागरिकता संशोधन कानून का चुनावी कनेक्शन क्या है? और क्या इससे ममता बनर्जी को चुनावों में घाटा और भाजपा को फायदा हो सकता है?

भाजपा के सर्वेक्षणों में क्या?
दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून को लागू कराने की मांग भाजपा के कई सर्वेक्षणों में हो चुकी है। केंद्र सरकार के सर्वे में भी इसे लागू करने का फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा था। इसलिए भाजपा सरकार ने चुनावों से ऐन पहले इसे लागू करने का दांव चला है। माना जाता है कि इस कानून के लागू होने से बांग्लादेश से आए मतुआ, राजवंशी और नामशुद्र समुदाय के हिन्दू शरणार्थियों को फायदा होगा। बांग्लादेश से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास के जिलों में इन समूहों का बसाव है और ये लंबे समय से भारतीय नागरिकता की मांग करते रहे हैं।

भाजपा ने 2019 के घोषणा पत्र में सीएए लागू करने का वादा किया था। भाजपा के सर्वेक्षणों के विवरण के आधार पर News18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल में नादिया और उत्तर 24 परगना जिलों की कम से कम पांच लोकसभा सीटों पर CAA कानून का प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा  राज्य के उत्तरी हिस्से की दो से तीन सीटों पर भी चुनावी असर देखने को मिल सकता है।

हिन्दू शरणार्थी कितने अहम
देश का बंटवारा होने और बाद के वर्षों में बांग्लादेश से आकर बंगाल के सीमाई इलाकों में बसे मतुआ समुदाय की आबादी राज्य की आबादी की करीब 10 से 15 फीसदी मानी जाती है। राज्य के दक्षिणी हिस्से की पांच लोकसभा सीटों में उनकी खासा आबादी है, जहां से दो सीटों (गोगांव और रानाघाट) पर 2019 में भाजपा को जीत मिली थी। 2019 के चुनावों से ऐन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मतुआ समुदाय के बीच जाकर उन्हें संबोधित किया था।

इसी तरह उत्तरी बंगाल के जिस इलाके में राजबंशी और नामशुद्रा समुदाय की आबादी का बसाव है, वहां भी भाजपा ने 2019 में तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। जलपाईगुड़ी, कूच विहार और बालुरघाट संसदीय सीट पर इन हिन्दू शरणार्थियों की आबादी करीब 40 लाख से ऊपर है।

भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षणों में कहा गया है कि ये हिन्दू शरणार्थी लंबे समय से सीएए लागू करने की मांग करते रहे हैं। सर्वे के मुताबिक राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में करीब 30-35 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ समुदाय की आबादी 40 फीसदी के करीब है। ये विधानसभा इलाके कुल मिलाकर पांच से छह लोकसभा क्षेत्रों के तहत आते हैं। यानी इतनी सीटों पर मतुआ समुदाय हार-जीत का फैक्टर तय करते हैं और 2019 से उनका झुकाव भाजपा की ओर रहा है और बाजपा ने उनकी पुरानी मांगों को पूरा करने का काम किया है।

ममता चिंतित क्यों?
2016 के विधान सभा चुनावों में उत्तर 24 परगना के 33 विधानसभा क्षेत्रों में से 27 पर ममता बनर्जी की पार्टी की जीत हुई थी लेकिन, 2019 के आम चुनावों में टीएमसी का वोट शेयर कम हो गया।  पार्टी 33 में से 12 विधानसभा क्षेत्रों में  पिछड़ गई. जबकि भाजपा वहां लंबी छलांग लगाने में कारगर रही।  इनमें से चार – बागदा, बोंगांव उत्तर, बोंगांव दक्षिण और गायघाटा ऐसी सुरक्षित विधानसभा सीटें शामिल हैं, जहां मतुआ संप्रदाय की आबादी 80 फीसदी से ऊपर है।

दक्षिण बंगाल में नादिया जिले में भी मतुआ समुदाय हार-जीत का निर्णायक फैक्टर है। 2019 के लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी की टीएमसी ने 17 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल  6 में ही लीड कर सकी थी, बाकी 11 में भाजपा ने लीड किया था। साफ है कि मतुआ और अन्य हिन्दू शरणार्थी समुदाय के  प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को सीएए लागू होने से सीधा चुनावी लाभ हो सकता है। अगर ये वोट भाजपा के पक्ष में गए तो ममता को पांच-छह सीटों का नुकसान हो सकता है।

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