पर्वत पाटिया, सूरत शहर (गुजरात) : 55 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा कर भारत सहित नेपाल, भूटान में भी अहिंसा, प्रमाणिकता, करुणा, मैत्री की अलख जगाने वाले अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण का आज पर्वतपाटिया पदार्पण पर भव्य स्वागत हुआ। युगप्रथान के स्वागत में पर्वतपाटिया की सड़कें दूर दूर हजारों श्रद्धालुओं से पटी नजर आरही थी। और हो भी क्यों नहीं वर्षों बाद अपने गुरू को अपनी धरा पर पाकर हर श्रद्धालु उल्लास से सराबोर था। प्रातः आचार्य श्री ने कामरेज तेरापंथ भवन से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में जगह जगह समूह रूप में सैकड़ों श्रद्धालु आचार्यवर की अभिवंदना कर दे थे तो वही गगन गुंजायमान नारों से पूरा वातावरण महाश्रमणमय बन रहा था। दूर दूर तक जहां दृष्टि जा रही थी वहां श्रद्धालु हाथों में जैन ध्वज एवं स्वागत पट्ट लिए नजर आ रहे थे। ज्ञानशाला के बच्चें भी इस मौके पर विभिन्न झांकियों द्वारा अपने आराध्य का स्वागत कर रहे थे। एक और जहां 16 किलोमीटर की दूरी, आकाश से आतप बरसाता सूरज वहीं जगह जगह श्रद्धालुओं को मंगलपाठ फरमाने के लिए टहराव लेना। ऐसे में भी चेहरे पर मुस्कान लिए समत्व भाव से आचार्यप्रवर गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग 16 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर गुरुदेव का स्थानीय तेरापंथ भवन में प्रवास हेतु पदार्पण हुआ।
मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा– जैन धर्म में कर्मवाद का विवेचन किया गया है। शक्ति के हिसाब से छह बलों का उल्लेख कर सकते है। पहला जन बल, जिसका चुनाव आदि में भी महत्व होता है। धन बल, तन बल, वचन बल, मन बल एवं आत्म बल। इन सब बलों का अपनी अपनी जगह महत्व होता है पर इनमे आत्म बल का सबसे बड़ा व ज्यादा महत्व होता है। अपनी शक्ति का कभी गोपन नहीं करना चाहिए। इसके जरूरी है की व्यक्ति अपनी शक्ति का विकास करते रहे। शक्ति का दुरूपयोग ना करे। हमारी शक्ति का सदुपयोग हो ऐसा चिंतन रहना चाहिए।
गुरुदेव नए आगे कहा कि अपनी शक्ति से हम किसी का अहित न करें – अपना भी हित हो व दूसरों का भी हित हो, ऐसा कार्य करें। दुर्जन की शक्ति दूसरों के लिए कष्टकारक व सज्जनों की शक्ति दूसरों का हित करने वाली होती है। जिसका शरीर भी अच्छा, चित में भी समाधि तथा व मनोबल भी दृढ हो, वह सबसे सौभाग्यशाली होता है। त्यागी आदमी शांति से रह सकता है। हमारी त्याग और संयम की शक्ति का विकास होता रहे। आत्म शक्ति के विकास के लिए गुस्सा, अहंकार, माया व लोभ इन कषायों को कमजोर करना आवश्यक है, ये कमजोर होंगे तो आत्म शक्ति का विकास हो सकेगा ध्यान, स्वाध्याय आदि भी आत्म-शक्ति को पुष्ट बनाने वाले होते हैं।
कार्यक्रम में। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी का सारगर्भित उद्बोधन हुआ। तत्पश्चात इस अवसर पर पर्वतपाटिया तेरापंथ सभा से श्री गौतम ढेलडिया, कॉरपोरेट विजय भाई, महिला मंडल अध्यक्षा ललिता पारख, श्री प्रदीप पुगलिया, श्री प्रदीप गंज, कुलदीप कोठारी ने स्वागत में विचार रखे। स्थानीय युवक परिषद, महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने स्वागत में सुंदर प्रस्तुति दी।