झंडे में चांद होना और चांद पर झंडा फहराना—ये दो बातें सुनने में मिलती-जुलती ज़रूर लगती हैं, लेकिन इनमें ज़मीन-आसमान नहीं, बल्कि “औकात” का फर्क होता है। एक झंडा ख्वाबों में लहराता है, दूसरा अंतरिक्ष में। और आज भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह किस श्रेणी में आता है।
पाकिस्तान का ‘गुड बॉय’ मोड
आज, 14 मई 2025 को, पाकिस्तान ने भारतीय बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को बिना शर्त और बिना शोरगुल के लौटा दिया। न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस, न सोशल मीडिया पर चाय पार्टी। इस ‘संजीदगी’ को देख कर भारतीय जनमानस को पहली बार लगा — “यह डर अच्छा है।” बहुत अच्छा।
अब आप खुद सोचिए — दशकों से भारत पर आतंक का निर्यात करने वाला देश, जिसने सौरभ कालिया जैसे बहादुर जवान के साथ अमानवीय बर्बरता दिखाई थी, वही पाकिस्तान आज एक सैनिक को चुपचाप लौटा देता है? ऐसा अचानक क्या बदल गया?
ऑपरेशन सिंदूर: आधी रात का सूरज
दरअसल, बदल कुछ नहीं गया — बदले हैं हालात, और भारत की कार्यशैली। भारत अब वो देश नहीं रहा जो हर बार “शांति शांति” जप कर दूसरे गाल पर तमाचा खाने को तैयार रहता था। भारत अब वह राष्ट्र है जो रात के अंधेरे में भी सूरज उगा देता है — और ऑपरेशन सिंदूर उसी उगते सूरज का नाम है।
इस सैन्य अभियान में भारत ने पाकिस्तान को हर मोर्चे पर झकझोर दिया —
- 10 से 11 एयरबेस तबाह
- 35-40 पाक सैनिक ढेर
- 150+ आतंकवादी खत्म
- और सबसे बड़ी बात, पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्दाफाश
जिस पाकिस्तान की फौज आतंकी जनाजों में भाग ले रही थी, उसे जब दुनिया ने देखा तो सिर्फ आँखें ही नहीं, भरोसा भी फट पड़ा।
भारत का संयम और पाकिस्तान की बेचैनी
यह एक युद्ध नहीं, मनोवैज्ञानिक अभियान भी था। पाकिस्तान के जनरल हों या उनके विदेश मंत्री, सब के सब अंदर से हिल गए। याद कीजिए अभिनंदन वर्धमान का वाकया — जब चाय पर राजनीति करते-करते अचानक पाकिस्तानी संसद में घबराहट छा गई थी। तब की तरह अब भी भारत ने बिना किसी सार्वजनिक मांग के अपने सैनिक की वापसी करवा ली।
अबकी बार फर्क सिर्फ इतना है कि पाकिस्तान ने पहले ही समझ लिया —
“अगर अबकी बार एक खरोच भी आई तो तुम्हारी खैर नहीं!”
सीज़फायर या रणनीतिक चुप्पी?
भारत ने सीज़फायर तो किया, लेकिन न नीति बदली, न नरमी दिखाई। न सिंधु जल संधि में कोई रियायत दी गई, न आतंक पर नीति में बदलाव हुआ। यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर भी कोई ‘फील गुड स्टोरी’ चलाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। क्योंकि इस बार संदेश साफ था —
“डर से आई हुई शांति, स्वागत योग्य है।”
और यह डर पाकिस्तान को ‘गुड बॉय’ बना गया।
पूर्णम कुमार शॉ की वापसी: प्रतीक और पराक्रम
बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ का लौटना सिर्फ एक सैनिक की घर वापसी नहीं थी। यह भारत की राजनीतिक दृढ़ता, कूटनीतिक दबदबे और सैन्य पराक्रम का प्रतीक था। पाकिस्तान यह जानता था कि यह कोई घुसपैठ नहीं थी, यह एक मानवीय चूक थी। लेकिन फिर भी उसने इसे मोहरा बनाने की कोशिश की। भारत ने मोहरा नहीं बनने दिया, बल्कि पूरी बाज़ी पलट दी।
कश्मीर से कराची तक: नई दिल्ली का संदेश साफ
अब संदेश ये है —
“हम वो नहीं जो सिर्फ मोमबत्तियाँ जलाते हैं। अब हर धोखे का हिसाब ब्याज समेत होता है।”
भारत अब ‘गांधी’ और ‘गोविंद’ दोनों को साथ लेकर चलता है। और पाकिस्तान को समझ आ गया है कि अब की बार भारत से टकराना — विकल्प नहीं, विध्वंस है।
और हाँ, यह डर… वाकई में अच्छा है।
क्योंकि यही डर शांति की ओर ले जाएगा। यही डर आतंक की कमर तोड़ेगा। और यही डर बताएगा कि
“चांद में झंडा होना और चांद पर झंडा होना — इन दोनों में फर्क सिर्फ प्रतीक का नहीं होता, पराक्रम का होता है।”
जय माँ भारती