पालनपुर:गुजरात का पालनपुर नगर में मंगलवार को मानों चारों दिशाओं से मंगल ही मंगल ध्वनि सुनाई दे रही थी। चहुंओर उत्साह, उमंग, उल्लास का वातावरण छाया हुआ था। पालनपुर में मानों सम्पूर्ण भारत सामहित हो चुका था। और सम्पूर्ण भारत से आए लोग मिलकर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी को 64वें जन्मदिन की मंगल बधाई दे रहे थे। इस सुअवसर का प्रत्यक्ष दृश्य देखने का सौभाग्य प्राप्त कर पालनपुरवासी मानों भावविभोर बने हुए थे। इतना ही आचार्यश्री की अभिवंदना को गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रतजी भी पधारे और उन्होंने भी आज के अवसर पर आचार्यश्री को वर्धापित कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
सूर्योदय से पूर्व ही ब्रह्म मुहूर्त से ही देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालुओं व पालनपुरवासियों की उपस्थित श्री एमबी कर्णावट हाईस्कूल का पूरा परिसर जनाकीर्ण बना हुआ था। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आचार्यश्री के संसारपक्षीय परिजनों ने थाल आदि बजाकर मंगलकामनाएं कीं तो वहीं उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने भी अपने-अपने ढंग से अपने वर्तमान अधिशास्ता को उनके जन्मदिन की मंगल बधाई दे रहे थे। इस अवसर पर उपस्थित संस्था शिरोमणि तेरापंथी महासभा सहित अन्य संस्थाओं के पदाधिकारियों आदि ने बधाई दी। साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। युवावर्ग ने लाइट के माध्यम से अपने आराध्य की आरती उतारी और फिर लाइट से ही हैप्पी बर्थडे नेमानंदन लिखकर अपने आराध्य को आधुनिक रूप में बधाई दी। सभी पर मंगल आशीष की वृष्टि करते हुए आचार्यश्री इन सभी चीजों से अप्रमत्त ही नजर आ रहे थे।
महाश्रमणोत्सव समवसरण में नौ बजने से पूर्व ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ आई थी, इस कारण विशाल प्रवचन पण्डाल भी मानों छोटा प्रतीत होने लगा। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान सूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी मंच पर विराजित हुए तो उनके दोनों तरफ उपस्थित साधु-साध्वियां मानों रश्मियों की भांति प्रतीत हो रहे थे। पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो रहा था। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ 64वें जन्मोत्सव समारोह का शुभारम्भ हुआ। तेरापंथ समाज-पालनपुर ने गीत को प्रस्तुति दी। मुनि अक्षयप्रकाशजी, मुनि चिन्मयकुमारजी, मुनि गौरवकुमारजी, मुनि संयमकुमारजी, मुनि केशीकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मुनि राजकुमारजी, मुनि नम्रकुमारजी ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री के संसारपक्षीय भाई श्री श्रीचंद दूगड़, श्री महेन्द्र दूगड़ व रत्नी बाई और मैत्री बोथरा ने अपनी प्रस्तुति दी। दूगड़ परिवार की ओर से गीत को प्रस्तुति दी गई। बालिका आद्या बच्छावत ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री को वर्धापित किया। आचार्यश्री की संसारपक्षीया बहिन साध्वी विशालयशाजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी ने भी इस अवसर पर आचार्यश्री को वर्धापित किया।
तदुपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने श्रद्धाप्रणति अर्पित की। साध्वी ख्यातयशाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी प्रवीणप्रभाजी साध्वी आर्षप्रभाजी ने अपनी संयुक्त प्रस्तुति दी। पालनपुर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। मुमुक्षु भाइयों ने भी अपनी प्रस्तुति के द्वारा आचार्यश्री को वर्धापित किया। समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने भी अपनी प्रस्तुति दी। ‘दादी मां एक स्मृति पुस्तक’ श्री नवनीत मूथा आदि द्वारा पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया गया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की वर्धापना को गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रतजी भी उपस्थित हुए। उन्होंने मंच पर विराजमान आचार्यश्री को वंदन करने के उपरान्त अपने स्थान पर बैठे। पालनपुर तेरापंथ समाज की ओर श्री कीरिटभाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
तेरापंथाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है जीवन क्यों जीएं? साहित्य में चौरासी लाख जीवन योनियां बताई गई हैं। उनमें यह मानव जीवन दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण है। जिस जीव को मानव जन्म प्राप्त हो जाता है, मानों उसके लिए विशेष बात हो जाती है। जन्म-मरण से हमेशा के लिए मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति भी इस मानव जीवन के बाद ही संभव हो सकती है। अन्य किसी भी जीव योनि से मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती।
जन्म होना तो एक सामान्य बात है। हर प्राणी का जन्म होता है। जन्म लेने के बाद जीवनकाल में आदमी पुरुषार्थ और कार्य क्या करता है, वह विशेष बात होती है। जो अच्छा कार्य करता है, अच्छा पुरुषार्थ करता है, वह अच्छा फल प्राप्त कर सकता है। भाग्यवाद को जानना भी आवश्यक है, किन्तु पुरुषार्थ करने का विषय है। भाग्य को भी अच्छा बनाने के लिए आदमी को अच्छा पुरुषार्थ करना चाहिए। कई बार पुरुषार्थ करने पर भी फल की प्राप्ति नहीं होती तो इसमें कोई दोष की बात नहीं होती। पुरुषार्थ करने का फल कभी न कभी अवश्य मिलता है। अगर गलत दिशा में भी पुरुषार्थ हो तो बुरा फल और अच्छी दिशा में पुरुषार्थ हो तो अच्छा फल प्राप्त हो सकता है। मानव जीवन में भी यदि कोई संन्यास को प्राप्त कर लेता है तो बहुत बड़े सौभाग्य की बात है।
जीवन क्यों जीएं, इसका समाधान शास्त्र के माध्यम से दिया गया कि मानव जीवन में धर्म के मार्ग पर चलते हुए मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा के कल्याण के लिए मानव जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा, मैत्री की भावना का प्रयोग हो। आज वैसे 64वां वर्ष प्रारम्भ हुआ है और इसमें राज्यपाल महोदय का समागमन हुआ है, यह महत्त्वपूर्ण बात है। एक राज्यपाल अपने एक राज्य के कार्यकाल में पांचवीं बार दर्शन को आए हों, ऐसा संभवतः नहीं हुआ है। दूसरी बात है कि आपके भाषण भी किसी संत या संन्यासी जैसी होती है। कभी मौका आए तो आप भी संन्यास स्वीकार कर लीजिएगा। सभी लोगों में धार्मिक-आध्यात्मिक साधना का विकास होता रहे।
आचार्यश्री की कृति ‘तीन बातें ज्ञान की’ की अंग्रेजी अनुदित पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रतजी ने अपने संबोधन में कहा कि यह जन्म-जन्मांतर का संयोग होता है, तब मुझे आपके कार्यक्रम में पांचवीं बार आने अवसर मिला है। आपका जीवन दर्शन, प्राणी मात्र के प्रति करुणा और दया का भाव दूसरों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। जैसा कि आचार्यप्रवर ने कहा कि जन्म तो सभी प्राणी का होता है, लेकिन सार्थक जन्म उसी का होता है, जिसके जीवन में अहिंसा, करुणा, मैत्री आदि की भावना होती है। आहार, निद्रा, मैथुन आदि सभी प्राणियों के सामान्य गुण हैं, लेकिन धर्म के द्वारा मानव की श्रेष्ठता सिद्ध होती है। आचार्यश्री पदयात्रा करते हैं और आपके प्रवचन मानव समाज को उन्नत दिशा में ले जाने वाले होते हैं। आपका चिंतन मानव मात्र के लिए प्रश्स्त मार्ग प्रदान करने वाला है। यह हम सभी के लिए गर्व की बात है। आपका जन्मदिन हम सभी के लिए प्रेरणा है, मार्गदर्शक है। हमारा देश आध्यात्मिक देश है। ऐसे ही संतों, ऋषि, मुनियों का देश रहा है। आपने सारे जीवन को प्राणी मात्र के कल्याण के समर्पित कर दिया है। आप हम सभी के गौरव हैं, आपका सान्निध्य हम सभी को प्राप्त होता रहे। राष्ट्रगान के साथ ही कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।