डेस्क:सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक चौंकाने वाले फर्जी मामले की जांच के आदेश सीबीआई को दिए हैं। यह मामला तब उजागर हुआ जब अदालत में पेश दस्तावेजों और हस्ताक्षरों को संदिग्ध पाया गया। खास बात यह है कि इस मामले में बिना मुकदमा दायर करने वाले की अनुमति या जानकारी के उसकी ओर से एक याचिका दायर की गई थी। यह याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ थी जिसने अजय कटारा के खिलाफ आपराधिक मामले को 2019 में खारिज कर दिया था। अजय कटारा, नितीश कटारा हत्या मामले का मुख्य गवाह है, और इसी वजह से यह मामला बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को प्राथमिक जांच दर्ज करने और दो महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, “अदालतें ‘न्याय का मंदिर’ होती हैं, लेकिन कई बार कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और न्याय की धारा को प्रदूषित करने के प्रयास होते हैं। यह मामला भी ऐसा ही है, जहां न्याय के साथ धोखाधड़ी की कोशिश की गई है।”
इस मामले में भगवती सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर की गई दो अपीलों की सुनवाई के दौरान पता चला कि सिंह ने खुद कोर्ट में याचिका दायर नहीं की थी। दरअसल, उन्होंने 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भेजकर यह साफ किया था कि उन्होंने कोई याचिका दायर नहीं की। अदालत ने पाया कि वकीलों के एक समूह ने फर्जी हस्ताक्षर और जाली दस्तावेजों का सहारा लिया। जस्टिस त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसे गंभीर मामला बताया और कहा, “कोई भी अदालत खुद को धोखाधड़ी के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दे सकती। जब वकील, जो अदालत के अधिकारी होते हैं, ऐसे मामलों में शामिल होते हैं, तो यह और भी चिंताजनक हो जाता है।”
जांच में यह भी सामने आया कि न सिर्फ हस्ताक्षर बल्कि नॉटरी का प्रमाणन भी संदिग्ध था। बेंच ने भगवती सिंह की बेटी और दामाद को समन भेजा, लेकिन सिंह ने बताया कि उनकी बेटी 2013 में भाग गई थी और उसके बाद से उन्होंने उससे कोई संपर्क नहीं रखा। कोर्ट ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, “अदालत में जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करना एक गंभीर धोखाधड़ी है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने सीबीआई को नियमित मामला दर्ज करने और दोषी पाए गए सभी व्यक्तियों के खिलाफ सख्त जांच करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि, “गवाहों की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है।” अदालत ने वकीलों को याद दिलाया कि जनता का न्यायपालिका में गहरा विश्वास होता है और वकील इस न्याय प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।