डेस्क। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद चार निर्दलीय विधायकों ने उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) को अपना समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। साथ-साथ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कश्मीर की राजनीति में इस बात की चर्चा है कि यह देरी उमर अब्दुल्ला की तरफ से की जा रही है। जम्मू-कश्मीर में एनसी के पास 42 सीटें हैं, लेकिन 48 सीटों के साथ एनसी-कांग्रेस गठबंधन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 45 के आधे के आंकड़े से थोड़ा ऊपर है। घाटी में एनसी ने जीत हासिल की है, जबकि जम्मू के मैदानी इलाकों ने निर्णायक रूप से भाजपा को वोट दिया है। कांग्रेस जम्मू क्षेत्र में सिर्फ एक सीट पाने में सफल रही।
जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है और केंद्र उपराज्यपाल के माध्यम से सरकार के दैनिक कामकाज पर नियंत्रण रखता है। उमर अब्दुल्ला के इस बात की एहसास है। चुनाव परिणाम आने के बाद उमर अब्दुल्ला के बयान से सियासी पंडितों के कान खड़े कर दिए। उन्होंने साफ-साफ और बार-बार कहा कि केंद्र के साथ समन्वय की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर के कई मुद्दे केंद्र से लड़कर हल नहीं किए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा, “मैं यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा कि आने वाली सरकार एलजी और केंद्र सरकार दोनों के साथ सहज संबंधों के लिए काम करे।”
इतना ही नहीं, उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के बिना भी नेशनल कॉन्फ्रेंस कैसे अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी। इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में उमर अब्दुल्ला ने कहा, “कांग्रेस के साथ गठबंधन हमारे लिए सीटों के बारे में नहीं था। हम कांग्रेस के बिना भी एक को छोड़कर बाकी सीटें जीत सकते थे।”
उन्होंने यह भी कहा कि नई सरकार की प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना है जिसके लिए वह दिल्ली में सरकार के साथ मिलकर काम करेगी। उन्होंने कहा, “इस संबंध में मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री एक सम्माननीय व्यक्ति हैं। उन्होंने यहां चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से वादा किया था कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। माननीय गृह मंत्री ने भी यही वादा किया था।”
इसके अलावा उमर अब्दुल्ला ने यह भी संकेत दिया है कि अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर कोई टकराव नहीं होगा, कम से कम अभी के लिए। उन्होंने कहा, “हमारा राजनीतिक रुख कभी नहीं बदला है। भाजपा से अनुच्छेद 370 की बहाली की उम्मीद करना मूर्खता है। हम इस मुद्दे को जीवित रखेंगे। हम अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए सही समय पर लड़ाई जारी रखेंगे।”
उमर अब्दुल्ला के बयानों से भाजपा के साथ राजनीतिक गठबंधन को लेकर कयास लगने लगे हैं। आपको बता दें कि दोनों दल पहले भी साथ-साथ रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का घटक दल था और उमर अब्दुल्ला 1999 से 2002 के बीच वाजपेयी सरकार में मंत्री थे।
बीते 2 अक्टूबर को राम माधव ने इंडिया टुडे टीवी से कहा, “2014 में एक अजीबोगरीब स्थिति थी। केवल भाजपा-एनसी या भाजपा-पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की संभावना थी। उस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी दोनों के साथ बातचीत हुई थी। अंततः भाजपा-पीडीपी ने सरकार बनाई।” हालांकि, राम माधव ने जम्मू-कश्मीर में भाजपा के नेशनल कॉन्फ्रेंस या किसी अन्य पार्टी के साथ हाथ मिलाने की किसी भी बात को खारिज कर दिया।
वहीं, वरिष्ठ भाजपा नेता देवेंद्र सिंह राणा ने कहा कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद भी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाजपा के साथ सरकार बनाने की कोशिश की। उमर अब्दुल्ला के पूर्व राजनीतिक सलाहकार राणा तीन साल पहले भाजपा में शामिल हुए थे। राणा ने कहा, “5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद भी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन बनाने के लिए भाजपा से संपर्क किया, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने एनसी नेताओं के सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया।”
ऐसे में अगर भाजपा और एनसी एक साथ आने का फैसला करते हैं तो अनुच्छेद 370 का मुद्दा बाधा नहीं बनेगा। 8 अक्टूबर को घोषित विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भी घाटी-मैदानी इलाकों के बीच विभाजन को सामने ला दिया। एनसी ने घाटी में सीटें जीतीं, वहीं भाजपा को जम्मू में बढ़त मिली।