डेस्क:सुप्रीम कोर्ट ने संविधान दिवस से पहले बड़ा फैसला सुनाते हुए संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजावादी’ और ‘पंथ निरपेक्ष’ शब्द को हटाने की मांग वाली याचिकाओं को थोक में खारिज कर दिया। 1976 में संविधान में 42वें संशोधन के बाद इन दोनों शब्दों को प्रस्तावना में शामिल किया गया था। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार ने कहा कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है। हालांकि किसी संशोधन से संविधान के मूल तत्व में बदलाव नहीं होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि 26 नवंबर 1949 के जैसी प्रस्तावना करने के लिए ही इन शब्दों को प्रस्तावना से हटाया नहीं जा सकता। सही बात यह है कि 26 नवंबर 1949 को संविधान देश के लोगों को सौंप दिया गया था। लेकिन संविधान को स्वीकार करने की तारीख आर्टिकल 368 के तहत दिए गए अधिकार को खत्म नहीं कर सकती। बीजेपी के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता बलराम सिंह और ऐडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल करते हुए कहा था कि 42वें संशोधन के बाद संविधान बनाने वालों के मूल दृष्टिकोण को खत्म कर दिया गया।