मुंबई: उदयपुर व् अमरावती में हुईं नृंशस हत्याओं के विरुद्ध कल विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा रैली का आयोजन मीरा भायंदर में किया गया जिसमें भारी मात्रा में संत समाज के दिग्गजों के साथ आम जनता का ताँता लगा रहा।
इस मौके पर अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी चिदम्बरानन्द सरस्वती जी महाराज, श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी व अध्यक्ष, अखिल भारतीय संत समिति ने हिन्दुओं को आपसी मत, वर्ग, जाति भेद मिटाकर हिन्दू एकता का आवाहन किया।
स्वामी चिदम्बरानन्द ने सभी आंगतुकों को सम्बोधित करते हुए कहा, “हमारा बिखरना की उनकी सबसे बड़ी ताकत है… हमारी एकजुटता ही हमारी एकमात्र रक्षक हो सकती है।”
स्वामी चिदम्बरानन्द ने बताया कि वेदों ने जिन कर्मों का विधान किया है वे धर्म हैं और जिनका निषेध किया है वे अधर्म हैं। वेद स्वयं भगवान के स्वरूप हैं….. वे उनके स्वाभाविक श्वास प्रश्वास एवं स्वयं प्रकाश ज्ञान है। अब प्रश्न उठना स्वभाविक है कि क्या जो नृशंस हत्याएं उदयपुर, अमरावती में हुईं वो वेदों में लिखी गयी या धर्म इसकी अनुमति देता है? ऐसे कृत्य वेदों से सम्बंधित नहीं तो इस प्रकार की निंदनीय घटनाओं को अंजाम देने वालों का कोई धर्म नहीं… ऐसे लोगों की मान्यताएं, मज़हब, सम्प्रदाय हो सकते हैं पर ऐसे लोगों का धर्म नहीं होता… मज़हबी कट्टरवाद या मज़हबी मान्यताओं की पैरवी करने वाले लोग आखिर क्या पाना चाहते हैं, उनके सिद्धांत क्या हैं? हमारा सिद्धांत साफ़ है कि ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई परपीड़ा सम नहीं अधमाई’ अर्थात दूसरों की भलाई के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है। जो व्यक्ति दूसरों को सुख पहुंचाता है, दूसरों की भलाई कर के प्रसन्न होता है, उसके समान संसार में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं है। यहाँ वैचारिक अंतर को समझने की आवश्यकता है। हमारा धर्म दूसरों के हित की बात करता है इसके विपरीत वे मासूमों का गला काट के अपने कट्टरवादी मज़हबी सिद्धांतों को प्रसारित कर रहे हैं … इसके पीछे असल में वो क्या चाहते हैं, ये प्रश्न उठाना बेहद जरूरी हो गया है। यदि उनका ये मानना है कि मासूमों की गला रेत कर हत्या करने से उनका धर्म बचेगा तो ऐसी सोच से लैस मज़हब, सम्प्रदाय को पशुओं के समान ही कहा जाएगा। ‘यहाँ सिर्फ हमारा शासन होगा और विरोध करने वालों को मिलेगी तो सिर्फ मौत’- ये पशुओं की प्रवृत्ति है….मानवता ये नहीं, धर्म ये नहीं। अतः ऐसी प्रवृत्ति के लोगों का व् ऐसे सिद्धांतों का प्रशासनिक व् सामाजिक स्तर पर बहिष्कार किया जाना चाहिए व् दण्डित किया जाना चाहिये ताकि इस कट्टर मानसिकता से समाज व् देश को बचाया जा सके।