सांस्कृतिक मूल्यों से सराबोर भाई बहन के पवित्र रिश्तों का हिमायती, भारतीय पर्व त्यौहारों में जाना पहचाना नाम है रक्षाबंधन। बहनों द्वारा भाइयों की कलाइयां रक्षा कवच से सजाने वाला यह त्यौहार पारस्परिक स्नेह, सम्मान और विश्वास की संपुष्टि करने वाला पर्व है। कहते है कि इससे पवित्र मनों पर चढने़ वाली कालुष्य की पर्तें समाप्त हो जाती है, मनोमालिन्य धुल जाता है,वैर विरोधी भाव समाप्त हो जाते है । राखी दायित्व बोध की चेतना भी है । बहन जब भाई के हाथ में राखी बांधती है तब वह यह भी भावना भाती है कि मेरे भैया के ये हाथ सदैव बुराइयों से लड़ने के लिए तैयार रहें, किसी भी खतरे को झेलने में सक्षम बनें,अंधविश्वास के दौर को समाप्त करें । यही नहीं ये हाथ कभी भी गलत कार्य न करें, गलत दिशा में आगे न बढे । आज बाजार में राखी की डिजायनों में भारी इजाफा हुआ है । हर बहन बढ़िया से बढ़िया राखी खरीदकर भाई के द्वार पर पहुंचती है।
व्यवहारिक परिवेश मे सबकुछ ठीक ठाक लग रहा है । पर गहराई से मंथन करें तो यह कहने में संकोच नहीं है कि निश्चल, स्वार्थरहित स्नेह और सम्मान का ग्राफ नीचे आया है । यही इस त्यौहार का संदेश भी है कि उभयमुखी दायित्वबोध के भाव विद्यमान रहे । आज हमें स्नेह और विश्वास का ऐसा सूर्य उगाना है कि रक्षाबंधन का त्यौहार नए सृजन का प्रतीक बने । व्यक्ति-व्यक्ति के मन मे आत्म विकास और भरोसे के भाव जागृत हो ।
युवा मुनि भरत कुमार जी ने कहा पर्व हमें नई प्रेरणा देने वाले है,रक्षा बन्धन से हमें आत्मरक्षा करनी चाहिए । बालसंत मुनि जयदीप कुमार जी ने संघ प्रभावना की प्रेरणा दी।
द्वितीय सत्र में जप अनुष्ठान का कार्यक्रम रखा गया,मुनि श्री ने फरमाया अनुष्ठान करने से हमें शक्ति सामर्थ्य व आत्मा का कल्याण होता है।जप अनुष्ठान में बिक्रम दुगड़ व अरविंद जैन ने मंत्रोंचार किया।