दुनिया भर में विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। यह खास दिन हर साल 2 अप्रैल को लोगों को ऑटिज्म के प्रति जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। दरअसल, ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है, जिसमें बच्चे का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है। ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1-11 साल के बच्चों में नजर आते हैं। इसके अलावा हाल ही में हुए सर्वेक्षण से प्रपात जानकारी से पता चला है कि सही समय पर इस मानसिक रोग का ईलाज न होने पर, इस मानसिक रोग के लक्षण बड़े बच्चों में भी पाए गए हैं, भारत में भी आटिज्म से पीड़ित बच्चों और वयस्कों की संख्या काफी है, सूत्रों से प्राप्त जानकारी से चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं, कुल भारत में ही 80% बच्चे इस रोग से पीड़ित है । सामान्य इंसान में दिमाग के अलग-अलग हिस्से एक साथ काम करते हैं, लेकिन ऑटिज्म में ऐसा नहीं होता। यही कारण है कि उनका बर्ताव असामान्य होता है। यदि ठीक से सहायता मिले तो मरीज की काफी मदद हो सकती है। नीला रंग आटिज्म का प्रतीक माना गया है।
आटिज्म जागरूकता दिवस 02 अप्रैल के मौके पर आज हम आपको इससे जुड़ी जानकारी साझा कर रहे हैं। आइए जानते हैं आखिर क्या है यह बीमारी, इसके लक्षण और इस रोग से पीड़ित बच्चों की कैसे करें मदद।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में 2 अप्रैल को विश्व आटिज्म जागरूकता दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की थी।
ऑटिज्म क्या है?
स्वलीनता या ऑटिज्म एक दिमागी विकार है जिसमें पीड़ित व्यक्ति अथवा बच्चे का मस्तिष्क परिस्थिति के अनुसार बहुत अधिक सक्रीय रूप से प्रतिक्रिया नहीं दे पाता है। इसका कारण आपसी तालमेल में उत्पन्न गड़बड़ी होती है। जिससे मस्तिष्क के सभी भाग एक साथ काम करने में विफल होते है। इससे बच्चे का दिमागी विकास भी प्रभावित होता है और वह भाषा विकार से पीड़ित हो जाता है।
ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक दिमागी बीमारी है। इसमें मरीज न तो अपनी बात ठीक से कह पाता है ना ही दूसरों की बात समझ पाता है और न उनसे संवाद स्थापित कर सकता है। यह एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है। इसके लक्षण बचपन से ही नजर आ जाते हैं। यदि इन लक्षणों को समय रहते भांप लिया जाए, तो काबू पाया जा सकता है।
दरअसल ऑटिज्म मस्तिष्क के विकास में बाधा डालने और विकास के दौरान होने वाला विकार है। ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। क्या आप जानते हैं व्यक्ति के विकास संबंधी समस्याओं में ऑटिज्म तीसरे स्थान पर है यानी व्यक्ति के विकास में बाधा पहुंचाने वाले मुख्य कारणों में ऑटिज्म भी जिम्मेदार है। बच्चे इस रोग के अधिक शिकार होते हैं। एक बार आटिज्म की चपेट में आने के बाद बच्चे का मानसिक संतुलन संकुचित हो जाता है। इस कारण बच्चा परिवार और समाज से दूर रहने लगता है, बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा, झगड़ालू और ऐसे ही कई दुष्प्रभाव बड़े लोगों में अधिक देखने को मिलता है।
आत्मकेंद्रित बच्चों में सामन्य बच्चों के विपरीत एक अलग किस्म का व्यवहार देखने को मिलता है। वह या तो सभी से अलग थलग और अपने में ही व्यस्त रहते है। और ज्यादा किसी से बातचीत भी नहीं करते है और लोगो से मिलने और जुड़ने में घबराते है। अथवा किसी एक खास विषय या अपनी पसंदीदा चर्चाओं में बहुत अधिक सक्रीय हो जाते है, और लगातार बोलते रहते है।
वह इस बात की परवाह नहीं करते की सामने वाला व्यक्ति उनकी बात समझ भी रहा है या नहीं? साथ ही वह किसी अन्य व्यक्ति को बोलने का अवसर दिए बिना ही लगातार बस बोलते रहते है। ऐसे बच्चों को दूसरों की बात या निर्देश समझने में भी परेशानी होती है। और वह अपनी खुद की भावनायें भी खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते है।
आटिज्म के यह सभी प्रकार निम्नलिखित है
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर : शांत और अकेले खुद में ही खोये रहना, सामान्य बच्चों से कम सक्रीय
एस्पर्जर सिंड्रोम : सामान्य बच्चों से अधिक बुद्धिमान परन्तु समाज से दूर अकेले रहने वाले
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (पीडीडी) : आटिज्म ग्रस्त और ऑटिस्टिक बच्चों से कुछ अलग
चाइल्डहुड डिसइंटिग्रेटिव डिसऑर्डर : कुछ देर से आटिज्म के लक्षण प्रदर्शित करने वाले बच्चे
ऑटिज्म के लक्षण
बच्चों में ऑटिज्म को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। बच्चों में ऑटिज्म के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं।
ऑटिज्म के दौरान व्यक्ति को कई समस्याएं हो सकती हैं, यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है।
ऑटिज्म के रोगी को मिर्गी के दौरे भी पड़ सकते हैं।
कई बार ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति को बोलने और सुनने में समस्याएं आती हैं।
ऑटिज्म जब गंभीर रूप से होता है तो इसे ऑटिस्टिक डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है लेकिन जब ऑटिज्म के लक्षण कम प्रभावी होते हैं तो इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर (ASD) के नाम से जाना जाता है। एएसडी के भीतर एस्पर्जर सिंड्रोम शामिल है।
12 से 13 माह के बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण नजर आने लगते हैं।
इस विकार में व्यक्ति या बच्चा आंख मिलाने से कतराता है।
किसी दूसरे व्यक्ति की बात को न सुनने का बहाना करता है।
आवाज देने पर भी कोई जवाब नहीं देता है। अव्यवहारिक रूप से जवाब देता है।
माता-पिता की बात पर सहमति नहीं जताता है।
लोगों से नजर मिलाने में परेशानी
अपनी भावनाएं व्यक्त न कर पाना
दूसरों की बात न समझना, ध्यान न देना
खुद में ही व्यस्त रहना, अकेले खेलना
पुकारने पर न बोलना, नजरअंदाज करना
पसंद की चर्चा में जरुरत से ज्यादा बोलना
एक ही काम बार बार करना या दोहराना
अजीब प्रकार के हावभाव और चेहरे बनाना
अजीब हरकतें करना जैसे पंजों पर चलना
देर से बोलना, शब्द पता होने पर भी न बोलना
चिड़चिड़े, संवेदनशील होना, बदलाव पसंद न करना
सिर पटकना, नींद न लेना, आत्मघाती व्यवहार
आपके बच्चे में इस प्रकार के लक्ष्ण हैं, तो आपको डॉक्टर विशेषज्ञ से परामर्श ज़रूर लें।
बच्चों में ऑटिज्म का मुख्य कारण
अभी तक शोधों में इस बात का पता नहीं चल पाया है कि ऑटिज्म होने का मुख्य कारण क्या है। यह कई कारणों से हो सकता है।
जन्म संबंधी दोष होना।
बच्चे के जन्म से पहले और बाद में जरूरी टीके ना लगवाना।
गर्भावस्था के दौरान मां को कोई गंभीर बीमारी होना।
दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।
दिमाग के रसायनों में असामान्यता होना।
बच्चे का समय से पहले जन्म या बच्चे का गर्भ में ठीक से विकास ना होना।
लड़कियों के मुकाबले लड़कों की इस बीमारी की चपेट में आने की ज्यादा संभावना होती है।
ऑटिज्म का प्रभाव
ऑटिज्म पूरी दुनिया में फैला हुआ है। क्या आप जानते हैं वर्ष 2010 तक विश्व में तकरीबन 7 करोड़ लोग ऑटिज्म से प्रभावित थे।
इतना ही नहीं दुनियाभर में ऑटिज्म प्रभावित रोगियों की संख्या मधुमेह, कैंसर और एड्स के रोगियों की संख्या मिलाकर भी इससे अधिक है।
ऑटिज्म प्रभावित रोगियों में डाउन सिंड्रोम की संख्या अपेक्षा से भी अधिक है।
आप ऑटिज्म पीडि़तों की संख्या का इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि दुनियाभर में प्रति दस हजार में से 20 व्यक्ति इस रोग से प्रभावित होते हैं।
लेकिन कई शोधों में यह भी बात सामने आई है कि ऑटिज्म महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में अधिक देखने को मिला है। यानी 100 में से 80 फीसदी पुरूष इस बीमारी से प्रभावित हैं।
ऑटिज्म के लिए, आयुर्वेदिक उपचार का महत्त्व
प्राचीन समय में लोग पूर्णतः स्वस्थ व निरोगी और चिरायु होते थे। क्योंकि वह प्रतिदिन आयुर्वेद के नियमो के आधार पर अपना जीवन-यापन करते थे। हालाँकि अभी भी देर नहीं हुई है। आप अभी भी आयुर्वेद को अपनाकर निरोगी बन सकते है।
ऑटिज्म आयुर्वेदिक उपचार आपको अपने बच्चे के ऑटिस्टिक होने या स्वयं में ही खोये रहने के व्यवहार और स्वलीनता के लक्षणों और कारणों को कम करने में सहायता प्रदान करता है। क्योंकि आयुर्वेद की शक्ति से सभी प्रकार के विकारों का इलाज संभव होता है।
आयुर्वेद प्राकृतिक तत्वों के माध्यम से समस्या के प्रभाव को धीरे-धीरे कम करता है और लगातार उपयोग करने पर एक समय बाद समस्या को जड़ से समाप्त भी कर देता है।
वर्तमान समय में समस्या यह नहीं है की रोग बहुत अधिक बढ़ गए है। परन्तु वास्तविक समस्या यह है की लोग आयुर्वेद के महत्त्व को धीरे धीरे भूलते जा रहे है।
ऑटिज्म में आयुर्वेदिक उपचार
ऑटिज्म आयुर्वेदिक उपचार बच्चे के व्यवहार सम्बन्धी और बोलने सम्बन्धी समस्याओं का उपचार करता है। यह सभी घरेलु उपाय बहुत ही साधारण है, और इसमें उपयोग होने वाली सभी वस्तुएं आपको बड़ी आसानी से अपने आसपास मिल जाएँगी।
हालाँकि इनका प्रयोग असरदार और लाभकारी होता है फिर भी व्यक्ति से व्यक्ति में इनका असर अलग अलग हो सकता है। इसलिए इनमे से किसी भी उपचार को करने से पहले किसी चिकित्सक की सलाह अवश्य लें अथवा किसी विशेषज्ञ की देखरेख में इन्हे करें।
1. प्राकृतिक तेलों की मालिश
चंदन, गुलाब, लैवेंडर और गेटू कोला तेलों का नियमित मालिश नसों में रक्त प्रवाह और न्यूरोनल प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित करता है। इसलिए यह बहुत शांत और राहत प्रदान करता है क्योंकि इसकी मालिश से आंखों के संपर्क और सामाजिक संबंध बेहतर होते है। और कम रूढ़िवादी व्यवहार और बढ़िया नींद में वृद्धि करने में मदद करता है।
2. ब्राह्मी
ब्रह्मी एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी है जो स्मृति को भूलने और सुधारने की प्रक्रिया में देरी करती है। इसे वैज्ञानिक रूप से बाकोपा मोननेरी के रूप में जाना जाता है। यह न केवल स्मृति में सुधार करता है, बल्कि यह समझने वाली शक्ति, बुद्धि और भाषण को भी बढ़ाता है। ब्रह्मी एक ऑटिस्टिक व्यक्ति की भावनाओं, व्यक्तित्व और मनोदशा की असामान्यता को भी सुधारता है। यह जटिल कार्यों जैसे समझ, तर्क और सीखने में भी मदद करता है।
3. अश्वगंध
अश्वगंध में गामा एमिनोब्यूट्रिक एसिड (जीएबीए) रिसेप्टर्स के लिए उच्च संबंध है। और यह वैज्ञानिक रूप से विस्थानिया सोमनिफेरा के रूप में जाना जाता है। यह कम जीएबीए गतिविधि तथा संज्ञानात्मक हानि से संबंधित है। इसलिए यह स्वलीनता के प्रभाव को कम करने में सहायता करता है।
4. शंखपुष्पी
शंकापुष्पी सीखने और स्मृति में सुधार करने में बहुत प्रभावी जड़ीबूटी है। यह वैज्ञानिक रूप से कन्वोलवुलस प्लुरिकालिस के रूप में जानी जाती है। और यह पागलपन और मिर्गी के इलाज में अत्यधिक प्रभावी है। इसलिए यह दिमाग को शांत करती है और आटिज्म के लक्षणों को धीरे धीरे कम करने में मदद करती है।
5. सेंटेला एशियाटिका
यह ऑटिज़्म के इलाज के लिए एक बहुत उपयोगी दवा बनाती है। क्योंकि इस आयुर्वेदिक जड़ी बूटी को पागलपन, भाषा विकारों और मिर्गी के लिए दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। जिससे स्वलीनता को नियंत्रित करने में सहायता प्राप्त होती है।
ऑटिज्म में सावधानी व अन्य उपाय
ऑटिज्म को पूरी तरह ठीक होने में काफी समय भी लग सकता है और यह भी संभव है की इस विकार के साथ व्यक्ति को एक लम्बे समय तक जीवन व्यतीत करना पड़े। परन्तु आपको निराश होने की जरुरत नहीं है क्योंकि इसके लक्षणों को ऑटिज्म आयुर्वेदिक उपचार और अभ्यास के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही पीड़ित बच्चे के परिवार के अन्य सदस्यों का भी सहयोग प्रदान करना बेहद जरूरी है। जिससे पीड़ित व्यक्ति को लक्षणों से उबरने में सहायता मिल सके।
अतः इस सम्बन्ध में सभी आवश्यक सुझाव निम्नलिखित है –
पीड़ित व्यक्ति पर चिल्लाएं या उसे डांटे नहीं
उसकी जरूरतों और बात को समझने की कोशिश करें
उसके प्रति सहयोग की भावना व्यक्त करें
बच्चे के अजीब व्यबहार पर खीजे नहीं शांति से काम लें
बच्चे को विटामिन और खनिज युक्त भोजन खिलाएं
बच्चे को आयरन युक्त पोषक खाद्य पदार्थ खिलाएं
एलोपैथी अनुसार ऑटिज्म का इलाज
एलोपैथी में ऑटिज्म का इलाज आसान नहीं है, लेकिन आयुर्वेद में इस रोग का ईलाज पूर्ण रूप संभव है ।
एलोपैथी अनुसार बच्चे की स्थिति और लक्षण देखते हुए डॉक्टर इलाज तय करता है।
बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी से शुरुआती इलाज होता है। जरूरत पड़ने पर दवा दी जा सकती है।
बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी का यही उद्देश्य है कि बच्चे से उसकी भाषा में बात की जाए और उसके दिमाग को पूरी तरह जाग्रत किया जाए।
अगर ठीक तरह से इन थेरेपी पर काम किया जाए तो कुछ हद तक बच्चा ठीक हो जाता है। वह अजीब हरकत करना कम कर देता है। दूसरे बच्चों के साथ खेल में शामिल होने लगता है।
एक ही शब्द या बात को बार-बार कहने की आदत छूट जाती है। इसलिए माता-पिता को सलाह दी जाती है कि वे बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। उसके हाव भाव को समझें। उनसे बात करने की कोशिश करें।
ध्यान देने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चा भी सामान्य जीवन जी सकता है।
ऑटिस्टिक रोगी का योग चिकित्सा द्वारा ईलाज
बहुत से मामलों में पाया गया है कि ऑटिस्टिक रोगी अकेले रहने कारण चिड़चिड़े रहते हैं। साथ ही समाज का व्यवहार कई बार इनके लिए तनाव का कारण बन सकता है।
सांस लेने में परेशानी होने पर भी योग लाभदायक हो सकता है। योग में कराए जाने वाले अलग-अलग व्यायाम मन की शांति के लिए भी बहुत जरूरी हैं। इसके साथ ही योग ऑटिज्म से होने वाली अशांति का भी इलाज कर सकता है।
ऑटिज्म के कुछ लक्षणों पर दवाओं से नियंत्रण पाया जा सकता है लेकिन इससे होने वाले भावनात्मक बदलावों के लिए योग से बेहतर इलाज संभव नहीं है।
योग चिकित्सा रहस्य अनुसार मुद्रा ज्ञान
रैगडॉल मुद्रा : इस मुद्रा को करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और तनाव नहीं रहता। इस आसन को करने के लिए आपको पीठ के बल आगे की तरफ झुकाया जाएगा। इसमें तनाव में राहत मिलती है।
ऑटिस्टिक बच्चों में योग से संतुलन और ध्यान केंद्रित करने के लिए योग है गुणकारी
ऑटिज्म की अवस्था में शारीरिक संतुलन में कमी आ सकती है। इसके साथ योग करने से किसी भी काम में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है।
साथ ही योग की मदद से मस्तिष्क और हृदय का संतुलन भी बढ़ता है जिसकी वजह से बच्चे में नई चीजों को सीखने की उत्सुकता बढ़ती है। इसका उदाहरण है :
सूर्यनमस्कार : इस योगासन में हाथों को ऊपर करके कुछ देर के लिए खड़े होना होता है जिससे शरीर में संतुलन आता है। सूर्य की तरफ खड़े होने की वजह से आपको विटामिन-डी भी मिलता है जो की हड्डियों की मजबूती में कारगर है। सुबह के समय इस आसन को करने से शरीर में अत्यधिक ऊर्जा का संचार होगा और बच्चा सक्रिय महसूस करेगा।
ऑटिस्टिक बच्चों में योग से बढ़ती है शारीरिक क्षमता और लचीलापन बार
योग में कराए जाने वाले अलग -अलग प्रकार के व्यायाम शरीर को मजबूती देते हैं। ऑटिज्म की समस्या में अक्सर शरीर में अकड़न आ जाती है और लचीलापन खो जाता है। इसे वापस पाने के लिए योग सही उपाय है।
वॉरियर मुद्रा : इस योगासन में आपके हाथों को छाती और कंधे से 90 डिग्री पर रखा जाता है। इससे शरीर में दर्द कम होगा और साथ ही आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी। ऑटिस्टिक बच्चों में योग खासकर वॉरियर मुद्रा लाभकारी होता है। ऑटिस्टिक बच्चों में योग से अच्छी नींद के लिए भी योग है जरूरी
कैट काऊ मुद्रा : इस आसन के नाम के अनुसार ही शरीर को गाय के जैसे नीचे की ओर झुकाया जाता है। इस मुद्रा में अंदरूनी अंगों और स्पाइन को राहत मिलती है साथ ही गले में भी राहत मिलती है। अंदरूनी अंगों में राहत मिलने की वजह से नींद अच्छी आएगी। इसलिए ऑटिस्टिक बच्चों में योग विशेषकर कैट काऊ मुद्रा से भी अधिक लाभकारी माना जाता है।
ध्वनि (शास्त्रीय संगीत) से थेरिपी : सगीत ध्वनि, सुनते हुए गहरी सांसों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। योग और ध्यान की मदद से बच्चा बाहरी दुनिया के साथ अपने अंदर भी कई बदलाव महसूस करेगा। समय के साथ उसका नई चीजों के प्रति भय कम होगा और वह शांत और सुलझा हुआ दिखेगा।
ऑटिस्टिक बच्चों की खास देखभाल क्यों है जरूरी?
एक्सपर्ट्स (डॉक्टर वत्स विक्रमादित्य वर्मा) के अनुसार ऑटिज्म एक व्यवहार संबधी समस्या है। जिसके लक्षण ऑटिस्टिक बच्चे को अन्य सामान्य बच्चों से अलग बना सकता है। इसके लक्षण वाले बच्चे सामान्य बच्चों की तरह नहीं होते हैं। ऐसे बच्चों में अक्सर गुमसुम रहना, किसी बात को कई बार दोहराना या रटते रहने की आदत देखी जा सकती है। इन बच्चों में माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ इमोशनल बॉन्डिंग में भी कमी हो सकती है। साथ ही, ऑटिस्टिक बच्चों के ब्रेन का विकास भी काफी पिछे रह सकता है। ऐसे में योग. मेडिटेशन और अन्य दवाओं के उपचार के लिए आप काफी हद तक अपने बच्चे को नई चीजें सिखा सकते हैं। योग के अलावा, आपको अपने ऑटिस्टिक बच्चे की देखभाल करते समय निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए, जैसेः
गैजेट्स से रखें दूर
मोबाइल फोन, टीवी या इसी तरह के अन्य उपकरण आपके बच्चे के ब्रेन के विकास को अधिक प्रभावित कर सकता है। अगर आप किसी डिजिटल गैजेट्स की मदद से अपने बच्चे को नई चीजें सीखाने या पढ़ाने की मदद लेते हैं, तो उसे गैजेट्स को आप अन्य उपकरण जैसे, बैटरी से चलने वाले खिलौनों की मदद ले सकते हैं। मार्केट में ऐसे कई खिलौने आसानी से मिल सकते हैं, जो सिर्फ एक बटन दबाने पर आपके बच्चे को काउंटिंग, ए-बी-सी, क-ख-ग आदि चीजों को सीखाने में मदद कर सकते हैं।
संतुलित रखें आहार
साथ ही, आपको ऑटिस्टिक बच्चों के खानपान पर भी खास ध्यान रखना चाहिए। उन्हें हमेशा घर पर बनें पौष्टिक आहार ही खाने के लिए दें। ऐसे बच्चों के लिए पैकेटबंद ड्रिंक्स, चिप्स या किसी भी तरह के प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। क्योंकि, जंक फूड और पैकेटबंद खाद्य पदार्थों में प्रोसेसिंग के दौरान केमिकल्स का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो बच्चे के नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इशारों की भाषा पर फोकस करें
ऑटिस्टिक बच्चे बहुत ही कम बोलना पसंद करते हैं। इसलिए, उन्हें ज्यादा बातचीत करने के लिए कभी भी फोर्स न करें, लेकिन उनकी गुमसुम रहने की आदत को आप इशारों की मदद से कम कर सकती हैं। अगर आप बच्चे से किसी तरह का संवाद करना चाहते हैं, तो अपने बच्चे से इशारों में बात करने की कोशिश करें। इस तरह के रवैये पर आपका बच्चे का ध्यान अधिक केंद्रित हो सकता है और वह बातों को अच्छे से समझ भी सकेगा।
खुद को शांत रखें
ऑटिस्टिक बच्चें कभी भी किसी भी बात पर चिड़चिड़ा हो सकते हैं या गुस्सा कर सकते हैं। ऐसे में आपको खुद को शांत रखना चाहिए और बच्चे के गुस्से के कम करने का प्रयास करना चाहिए। खासकर तब जब आप किसी वजह से अपने बच्चे के साथ घर से बाहर कहीं घूमने या किसी तरह का ऑउट डोर गेम्स खेलने के लिए गए हों।
निष्कर्ष व परिणाम
हर बच्चा अपने आप में खास होता है। इसलिए उनकी देखभाल करना और उन्हें किसी भी प्रकार के समस्या से बचाना बेहद जरुरी है जिससे की वह अपना सम्पूर्ण विकास कर सकें और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकें। आटिज्म एक गंभीर विकार है पर आपसी सहयोग और समझबूझ से इसे कम किया जा सकता है। इसलिए बच्चे को नियमित रूप से जरूरी अभ्यास करवाएं, और उनकी देखभाल करें।