यद्यपि प्रत्येक मास की चतुर्थी को गणेश अथवा विनायक चतुर्थी कहते हैं, लेकिन भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। गणेश चतुर्थी विशेष रूप से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाई जाती है।
ऐसे करें विराजमान
31 अगस्त को गणेश चतुर्थी गणेश महोत्सव के रूप में मनाई जाएगी। हिंदू समाज में मिट्टी के बने गणेश जी का आह्वान करके उनकी प्रतिमा को लाते हैं और विधिवत घर में पूजा, आरती एवं भोग की व्यवस्था करते हैं। गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का आगमन या विराजमान करना और अनंत चतुर्दशी को गणेश का विसर्जन करने का महत्व है, किंतु कुछ लोग थोड़े समय के लिए ही गणेश जी अपने घरों में विराजमान करते हैं। यह अवधि तीन, पांच और सात दिन की हो सकती है। इसी प्रकार से गणेश जी को विराजमान करना चाहिए।
गणेश जी विराजमान के लिए नियम
-गणेश जी को संकल्पपूर्वक अपने घर में आने के लिए निमंत्रण दें।
-उन्हें श्रद्धा भाव से लेकर आए, घर आने पर फूलों से उनका स्वागत करें।
-विशेष स्थान पर उन्हें विराजमान कर धूप, दीप, नैवेद्य, आरती से उनकी पूजा करें।
उसके पश्चात प्रतिदिन सुबह-शाम की आरती, भोग, प्रसाद की व्यवस्था करें। जितने दिनों के लिए आप गणेश जी को लाए हैं, उसके बाद विशेष आयोजन के द्वारा उन्हें नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। घर से मंगलगान गाते हुए पुष्प वर्षा करते हुए भगवान गणेश को आदरपूर्वक विदा करें और अगले साल आने के लिए पुनः कहें। हालांकि भारतीय संस्कृति में गणेश जी का विसर्जन करना उचित नहीं है। यद्यपि सब लोग विसर्जन करते हैं, लेकिन यह परंपरा सही नहीं है। गणेश जी को लाने के पश्चात उनको स्थाई रूप से घर में निवास करना कराना चाहिए।
गणेश स्थापना के शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 31 अगस्त को अच्छा योग नहीं बन रहा है, किंतु 12:00 बजे के पश्चात गणेश जी को अपने घरों में विराजित करें। क्योंकि यह प्रचलन भगवान को विराजित करने और विसर्जन करने का है, इसलिए चर लग्न का मुहूर्त श्रेष्ठ माना जाता है। घर में लक्ष्मी-गणेश तो पहले से ही स्थाई रूप से विराजित होते हैं। 31 अगस्त को चर लग्न (मकर लग्न )शाम 14:10 बजे से 16:56 बजे तक रहेगा। उसके पश्चात शाम 20:50 से 22:25 बजे तक भी मेष लग्न (चर लग्न) है। उसमें भी आप इनकी स्थापना या विराजमान कर सकते हैं। गणेश जी के घर में विराजमान की अवधि में सात्विक वातावरण, नियम,संयम का पालन अवश्य होना चाहिए। नियमित रूप से भगवान जी के दर्शन, पूजन एवं आरती का आयोजन करते रहें। ’ओम् गं गणपतये नमः। ओम् विघ्न विनाशकाय नमः। ओम् ऋद्धिसिद्धि पतये नमः।’ इन विशेष मंत्रों का जाप नियमित करते रहें। भगवान को मोदक अर्थात लड्डू प्रिय हैं, इसलिए रोजाना उनको मोदक का भोग लगाएं।
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)