मुंबई,गजेंद्र सामोता:साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञा जी के पावन सान्निध्य में व तेरापंथ सभा के तत्वावधान में आयोजित पर्युषण महापर्व के पाँचवें दिन- “अणुव्रत चेतना दिवस” पर धर्मसभा को उद्बोधित करते हुए साध्वीश्री जी ने कहा- आवश्यकता है हर व्यक्ति के जीवन में व्रत चेतना का विकास हो। संवर की साधना पांचवे गुणस्थान से प्रारंभ होती है। मोक्ष मार्ग में निर्जरा से ज्यादा संवर को स्थान प्राप्त है।
जैन साधना पद्धति का आधार है-व्रत। जो व्रतों का धर्म है यह व्रात्य धर्म या व्रात्य दर्शन कहलाता है। जैन समाज को व्रत दर्शन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा प्रदत्त अणुव्रत आन्दोलन ने तेरापंथ को ख्याति प्रदान की है। अणुव्रत ने गुरुदेव तुलसी के नाम को राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्थापित किया।
साध्वीश्री जी ने समणश्रेणी के दिनों में की गई अपनी देश- विदेशों की अनेक यात्राओं एवं कॉन्फ्रेसेज के अनुभव को शेयर करते हुए कहा- अणुव्रत की गूंज विदेशों की धरती पर भी गूंजी। इन सम्मेलनों में अनेक बार मुझे गुरुदेव का प्रतिनिधित्व करने का सौभाग्य मिला।
आचार्य श्री तुलसी द्वारा दी गई अणुव्रत की विरासत मानव मात्र के लिए आचरणीय है।
अणुव्रत ऐसी मानवीय आचारसंहिता है, जिसका सम्प्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं। इस व्रत चेतना ने अनेक व्यक्तियों के जीवन का संरक्षण किया है। बारह व्रतों का स्वीकरण श्रावक समाज के लिए अपेक्षित है। आज समाज में प्रदर्शन की भावना बढ़ती चली जा रही है।
जैन कहलाने वाले श्रावक परिवार में शराब आदि का प्रचलन बढ़ता चला जा रहा है, यह जैनत्व के आगे एक चिन्तनीय प्रश्नचिह्न है। आप बुजुर्गों की बदौलत जैन हो, क्या आप भावीपीढ़ी के संस्कारों के प्रति जागरूक हैं। आज जैन धर्म की ऊंचाई का महत्वपूर्ण आधार है- सात्विक संस्कार । प्रदर्शन की पद्धति को रोकने का प्रयास करें। पाश्चात्य – दर्शन को हावी न होने दें। आवश्यकता है जहाँ कहीं समाज में कुरुढ़ियाँ बढ़ रही है, वहां जाने से बचें। आत्म सुधार का पवित्र संकल्प सही दिशा प्रदान करता है। पर्युषण पर्व की प्रेरणा है, जैनत्व के संस्कारों की पुष्ट करना है। जैन समाज अपने घरों के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए आगम साहित्य का खजाना भी रखें, ये आगमों के विकिरण घर के वातावरण को विशुद्ध बना देते हैं।
इस अवसर पर साध्वीश्री जी द्वारा बारह व्रत स्वीकरण की विशेष प्रेरणा दी गई। तेरापंथ सभा मंत्री श्री अशोक जी खतंग ने अपने विचार व्यक्त किए। अखंड जप एवं रात्रिकालिन एवं दोपहर के कार्यक्रमों में श्रावक समाज की उपस्थिति एवं उत्साह सराहनीय है। कार्यक्रम का प्रारंभ कन्यामंडल द्वारा विशेष अंदाज में किया गया। साध्वीवृन्द ने अणुव्रत गीत का संगान किया।
साध्वी डॉ राजुलप्रभा जी ने कहा- आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत के रूप में ऐसा सूर्य विश्व को दिया है, जो जन-जन के मार्ग को आज भी रोशनी दे रहा है।
जरूरत है, मानव अणुव्रत को समझे, जानें और स्वीकार कर जीवन को सार्थक दिशा दे। साध्वी डॉ चैतन्यप्रभा जी ने मंच संचालित किया।