भोपाल:मध्य प्रदेश पहला ऐसा राज्य है जहां शिवराज सरकार ने बलात्कारियों को फांसी की सजा का प्रावधान बनाया है। लेकिन इसके बाद भी महिलाओं और बच्चियों के साथ दुष्कर्म के दोषियों को सजा मिलने में देरी होती नजर आ रही है। जानकारी के अनुसार इस समय करीब 9 हजार डीएनए सैंपल पेंडिंग पड़े हैं। जिसके चलते इनकी सजा में विलंब हो रहा है। और इसका मुख्य कारण एफएसएल को बताया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश का एफएसएल या फॉरेंसिक साइंस लैब लाचार नजर आता है। और इसका कारण मध्य सागर, भोपाल, जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर लाइव साइंटिस्ट और सपोर्टिंग स्टाफ की कमी हैं। इस समय सिर्फ 20% स्टाफ के साथ एफएसएल लैब चल रही हैं। और करीब 60% स्टाफ की कमी के चलते लगभग 42 हजार से ज्यादा सैंपल पेंडिंग हैं।
बताया जा रहा है कि 2018 से कारीबन 10 हजार डीएनए के पेंडिंग हैं। इसी के चलते कहा जा रहा है कि फांसी की सजा का कानून बनाने से ही काम नहीं चलेगा और बाकी व्यवस्थाएं भी दुरुस्त करना होगी। फॉरेंसिक साइंस लैब स्टाफ की भारी कमी को जल्द दूर करना होगा।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो फोरेंसिक साइंस लेब में दुष्कर्म मामलों के 9 हजार से ज्यादा सेंपल जांच के इंतजार में सालों से पड़े हुए हैं। ये मामले साल 2018 से पेंडिंग हैं। और इन्ही पेंडिंग केस के चलते पुलिस दुष्कर्म के मामलों में चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाती और दुराचार के आरोपियों की सजा में देरी हो रही है।
नियमों के मुताबिक साइंटिस्ट के साथ 3 सपोर्टिंग टेक्निकल स्टाफ होना चाहिए। लेकिन प्रदेश की की एफएसएल लैब में एक भी साइंटिस्ट के साथ सपोर्ट स्टाफ नहीं है। और मजबूरन एफएसएल विभाग को आरक्षक से ही काम चलाना पड़ रहा है। अलग-अलग जांच सैंपल पर नजर डालें तो 42 हजार से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। जिनमें डीएनए के 10 हजार केस हैं।
इसे लेकर एमपी फॉरेंसिक साइंस लैब के एक अधिकारी ने बताया कि स्टाफ की कमी है और इसी स्टाफ की कमी के चलते पेंडिंग केस का सिलसिला सालों से बना हुआ है। बलात्कार के मामलों की डीएनए रिपोर्ट समय से ना आने के चलते पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने में देरी होती है और इसके कारण बलात्कारियों को सजा मिलने में और समय लग जाता है।