कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को परम पुण्य दायक अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है | ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी से ही द्वापर युग की शुरुआत हुई | इस तिथि को युगादि तिथि भी कहा जाता है | इसी दिन श्री हरि विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था। अक्षय नवमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी कंस को मरने से पूर्व ,जनता के मन में कंस के विरुद्ध क्रांति के निमित्त तीन वनों की परिक्रमा की थी। इसी परम्परा के निर्वहन के फलस्वरूप लोग आज भी अक्षय नवमी के अवसर पर असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते है | मथुरा वृन्दावन एवं कार्तिक मास साक्षात् राधा-दामोदर स्वरुप है।
नवमी तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2022 दिन मंगलवार की रात में 1:09 से आरंभ होगा। जो 2 नवंबर 2022 दिन बुधवार को रात में 10:53 तक व्याप्त रहेगी । ऐसी स्थिति में अक्षय नवमी का पवित्र पर्व दो नवंबर 2022 दिन बुधवार को मनाया जाएगा । इस वर्ष नवमी तिथि में हीअयोध्या मथुरा की परिक्रमा एक नवंबर की रात अर्थात एक व दो नवंबर की रात 1:09 से आरंभ होकर अक्षय नवमी पर्यंत 2 नवंबर 2022 दिन बुधवार को रात में 10:53 तक निरंतर चलता रहेगा ।
आज के ही दिन आंवला नवमी भी मनाई जाती है | अक्षय नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक श्री हरि विष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते है । इसी कारण अक्षय नवमी को आंवला पूजन सम्पूर्ण स्त्री जाति के लिए धन संपत्ति , सौभाग्य वृद्धि तथा सन्तान सुख प्राप्ति कारक माना जाता है |
इस दिन पूजा-अर्चन ,स्नान तर्पण ,अन्न आदि का दान तथा परोपकार करने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है |
इस नवमी को पति-पत्नी को साथ में उपासना करने से परम शांति , सौभाग्य ,सुख एवं उत्तम संतान की प्राप्ति होती है | साथ ही साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति भी मिलाती है |
इस दिन पति-पत्नी को उत्तम फल की प्राप्ति हेतु संयुक्त रूप से पांच आंवले के वृक्ष के साथ-साथ पांच अन्य फलदार वृक्ष भी लगाना चाहिए |
अक्षय नवमी पूजन विधि
आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए।
इसके बाद अक्षत, पुष्प, चंदन से पूजा-अर्चना कर और पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर, बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए तथा इसकी कथा सुनना चाहिए।
भगवान विष्णु का ध्यान एवं पूजन करना चाहिए।
पूजा-अर्चना के बाद बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है।
इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं।
कई धर्म प्रेमी तो आंवला पूजन के बाद वृक्ष की छांव में ब्राह्मण भोज भी कराते है तथा स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करते है।