होलिका दहन से पहले के आठ दिन होलाष्टक कहलाते हैं। इस वर्ष एक तिथि के लगभग दो दिन रहने के कारण होलाष्टक नौ दिनों का होगा। इसकी शुरुआत 27 फरवरी से होगी और समापन 7 मार्च को होलिका दहन के साथ होगा।
होलाष्टक की मान्यता मुख्य रूप से पंजाब और उत्तर भारत में है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां कुछ मुख्य कामों का प्रारम्भ होता है वहीं कुछ कार्य ऐसे भी काम हैं जो इन आठ दिनों में नहीं किए जाते। इस बार होली के नौ दिन पहले ही सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य रोक दिए जाएंगे। होलाष्टक के दौरान विवाह, गृहप्रवेश या नई दुकान खोलने जैसे कार्य वर्जित हैं।
पं.वेदमूर्ति शास्त्रत्ती बताते हैं कि होलाष्टक के समय सोलह संस्कारों में अंतिम संस्कार छोड़ कर कुछ नहीं किया जाता। अंतिम संस्कार से पहले भी शांति पाठ किया जाता है। इन आठ दिनों में शुभ मुहूर्त का अभाव होता है। होलाष्टक की अवधि को साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। इस समय पर केवल तप करना ही अच्छा कहा जाता है।
रह्मचर्य का पालन करते हुए किया गया धर्म कर्म अत्यंत शुभदायी होता है। शास्त्रत्तें के अनुसार होलाष्टक में व्रत, दान से कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस काल में होलिका दहन के लिए लकड़ियां जुटाना मुख्य कार्य है। होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को शुद्ध किया जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रह्लाद को श्रीविष्णु की भक्ति न करने को कहा लेकिन प्रह्लाद ने एक न सुनी। इससे नाराज हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को यातनाएं दी। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक मृत्यु तुल्य कष्ट दिए। मारने का भी कई प्रयास किया लेकिन प्रह्लाद की भक्ति में इतनी शक्ति थी की श्रीहरि ने हर बार उनकी रक्षा की। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए बहन होलिका को जिम्मा सौंपा। होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी मगर श्रीहरि ने अपने भक्त को बचा लिया जबकि होलिका जल गई। इस कारण होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता हैं।