-पहले आसमान से बारिश और बाद में गुरु की अमृतवाणी की वर्षा से आप्लावित हुए उधनावासी
-धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करता रहे धर्मसंघ : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-साधु, साध्वियों, समणियों और श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य के पदाभिषेक समारोह पर की अभिवंदना
-मुनि उदितकुमारजी व मुनि दिनेशकुमारजी को आचार्यश्री ने किया बहुश्रुत परिषद का सदस्य मनोनीत
उधना, सूरत (गुजरात) : भगवान महावीर युनिवर्सिटी में अक्षय तृतीया महोत्सव के भव्य आयोजन व तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के 62वें जन्मोत्सव के दिव्य आयोजन के उपरान्त रविवार को अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी युनिवर्सिटी परिसर से गतिमान हुए और लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर सूरत महानगर के उधना उपनगर में पधारे। जहां युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का 14वां आचार्य पदारोहण समारोह भव्य रूप में समायोजित हुआ।
सूरत महानगर के भगवान महावीर युनिवर्सिटी परिसर में अष्टदिवसीय प्रवास व संघ प्रभावक आयोजनों की सम्पन्नता के उपरान्त रविवार को प्रातः की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग प्रस्थान करने को हुए तो अचानक मौसम में परिवर्तन हुआ और आसमान में काल बादल छा गए और बरसात भी प्रारम्भ हो गई। अचानक हुई बरसात से बरसात से विहार में विलम्ब तो अवश्य हुआ, लेकिन दृढ़ संकल्पशक्ति के धनी, श्रद्धालुओं के आराध्य आचार्यश्री महाश्रमणजी आज के निर्धारित गंतव्य की ओर बढ़ चले। अपने आराध्य की अभिवंदना को आतुर उधनावासी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंच रहे थे। आसमान से हुई बरसात के गुरु की आशीष वृष्टि प्राप्त कर सूरत की जनता निहाल हो रही थी। उधना उपनगर की सीमा में प्रवेश करते ही श्रद्धा का सैलाब उमड़ आया। चौड़ी सड़कें इस सैलाब में मानों सिकुड़-सी गईं। जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री तेरापंथ भवन में पधारे। जहां आचार्यश्री का त्रिदिवसीय प्रवास निर्धारित है।
कुछ समय बाद ही आचार्यश्री मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए प्रवचन पण्डाल में पधार गए। महाश्रमण समवसरण पूरी तरह जनाकीर्ण था। बरसात में भीगने के उपरान्त जनता गुरुमुख से होनी वाली अमृतवर्षा से अपनी आत्मा को तृप्ति प्राप्त करने के लिए तत्पर थी। उधनावासी भी अपने आराध्य के आचार्य पदाभिषेक दिवस समारोह का अवसर पाकर पुलकित थे। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ भव्य समारोह का शुभारम्भ हुआ।
मुनि दिनेशकुमारजी आदि छह संतों ने विभिन्न श्लोकों के माध्यम से अपने सुगुरु की अभ्यर्थना की। मुमुक्षु बहनों ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने आचार्यश्री के 14वें पदाभिषेक समारोह पर गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए मंगलकामनाएं समर्पित कीं। बहुश्रुत परिषद के संयोजक मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने अपने आराध्य की स्तुति करते हुए आपके गुणों का गुणगान किया।
इस समारोह में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि आज वैशाख शुक्ला दसमी है। आज भगवान महावीर का कैवल्य कल्याण दिवस है। भगवान महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में साधुत्व को स्वीकार किया और लगभग साढ़े बारह वर्ष की कठोर तपस्या के उपरान्त उन्हें आज के ही कैवल्य की प्राप्ति हुई। आज के दिन को ज्ञान प्राप्ति का दिन भी माना जा सकता है।
आज का दिन तेरापंथ धर्मसंघ से भी जुड़ गया। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु हुए। धर्मसंघ ने विकास किया और आचार्यों की उत्तरवर्ती परंपरा चली। इसमें नवमें आचार्यश्री तुलसी का आचार्यकाल सर्वाधिक लम्बा रहा। मुझे उनके नजदीक रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने मुझे छोटी अवस्था में ही संघीय कार्यों से जोड़ दिया। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी के आंतरिक सहयोगी के रूप में और फिर महाश्रमण बना दिया। इस प्रकार उन्होंने मुझे संघीय प्रशिक्षण, चिंतन और दृष्टि प्रदान की। बाद में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने मुझे कितना तैयार किया। उन्होंने मुझे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के दो सप्ताह बाद औपचारिक तौर धर्मसंघ ने मुझे आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। दोनों आचार्यों ने मुझ पर कितना उपकार किया। अभी मेरे साथ साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनि और साध्वीवर्या का सहयोग भी प्राप्त हो रहा है।
मुझे संघीय दायित्व की जो अमल-धवल चद्दर ओढ़ाई गई थी, मैं इसके दायित्व का निर्वहन कर सकूं और अमल-धवल चद्दर को बेदाग रख सकूं, ऐसी मैं अपने प्रति मंगलकामना करता हूं। धर्मसंघ में अनुशासन, विनय, श्रद्धा व सेवा का भाव प्रवर्धमान होता रहे। मैं आचार्यश्री भिक्षु सहित समस्त पूवाचार्यों व आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रति अपनी प्रणति अर्पित करता हूं और हमारा धर्मसंघ धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करता रहे, ऐसी मैं सबके प्रति मंगलकामना करता हूं।
आचार्यश्री ने इस अवसर पर घोषणा करते हुए कहा कि हमारे बहुश्रुत परिषद के पहले सात सदस्य हुआ करते थे, किन्तु अभी वर्तमान में पांच सदस्य ही हैं तो मैं चाहता हूं कि इस परिषद के सदस्यों की संख्या सात हो जाए। इसके लिए मैं दो मुनिजी को बहुश्रुत परिषद का सदस्य मनोनीत करता हूं। एक सदस्य मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी और दूसरे मुनि दिनेशकुमारजी। अब आप दोनों भी बहुश्रुत परिषद के सदस्य हैं। आचार्यश्री की ऐसी घोषणा को सुनकर पूरा प्रवचन पण्डाल जयकारों से गूंज उठा। मुनिश्री उदितकुमारजी और मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने अपने आराध्य के प्रति अपने कृतज्ञभावों को अभिव्यक्त किया।
आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों तीन महीने तक औषधि सेवन के विगय वर्जन की बक्सीस की तथा एक वर्ष तक ‘आवश्यं’ का स्वाध्याय करने की प्रेरणा प्रदान की।
इसके उपरान्त आचार्यश्री के पट्टोत्सव समारोह के संदर्भ में साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। साध्वी वीरप्रभाजी, साध्वी लब्धिश्रीजी, साध्वी रूचिरप्रभाजी, साध्वी ऋद्धिप्रभाजी, साध्वी समताप्रभाजी, साध्वी दीक्षाप्रभाजी, साध्वी भव्ययशाजी, साध्वी नवीनप्रभाजी, साध्वी मृदुलप्रभाजी, साध्वी जिज्ञासाप्रभाजी, समणी सत्यप्रज्ञाजी, समणी रोहिणीप्रज्ञाजी ने अपनी-अपनी प्रस्तुतियां दी। साध्वी पावनप्रभाजी आदि साध्वियों, बहिर्विहारी साध्वियों ने गीत का संगान किया। मुनि निकुंजकुमारजी व मुनि मार्दवकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। उधना समाज द्वारा आचार्यश्री के पदाभिषेक समारोह के अवसर पर धर्मचक्र समर्पित किया। उधना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। उपासक ओमप्रकाश जैन के परिजनों ने उनका जीवनवृत्त पूज्यचरणों में लोकार्पित किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने स्थान पर खड़े होकर संघगान किया।