पटना:बुधवार को बिहार में बिजली संकट से लोग परेशान रहे। गांवों की कौन कहे, शहरी इलाकों में भी जमकर लोडशेडिंग हुई। खपत से लगभग 1200-1400 मेगावाट कम बिजली मिलने के कारण दक्षिण बिहार के 37 ग्रिड तो उत्तर बिहार के 34 ग्रिड को कम बिजली मिली। इस कारण इन ग्रिडों से जुड़े फीडर को बारी-बारी से चलाया गया। रोटेशन से फीडर चलने के कारण शहर से लेकर गांवों तक छह से आठ घंटे तक बिजली गुल रही।
कंपनी अधिकारियों के अनुसार एनटीपीसी की बाढ़ व कहलगांव की एक यूनिट बंद हो गई। इस कारण राज्य को केंद्रीय कोटे से लगभग 700 मेगावाट कम बिजली मिली। केंद्रीय सेक्टर से बिहार को 5213 मेगावाट बिजली मिलनी है पर 4513 मेगावाट ही बिजली मिल सकी। केंद्रीय कोटे से कम बिजली मिलने के कारण कंपनी ने खुले बाजार से 2000 मेगावाट बिजली लेने के लिए बोली लगाई। लेकिन, बाजार में बिजली उपलब्ध नहीं होने के कारण बिहार को मात्र नौ मेगावाट ही बिजली मिल सकी।
इस कारण स्थिति यह हो गई कि आम तौर पर दिन में ही 5000 मेगावाट तक बिजली उपलब्ध कराने वाली कंपनी रात में भी इतनी बिजली नहीं दे सकी। बुधवार को पीक आवर में पूरे बिहार को बमुश्किल 4900 मेगावाट बिजली मिल सकी। जबकि औसतन राज्य में अभी 6200 मेगावाट से अधिक बिजली आपूर्ति की जाती है। लू के साथ भीषण गर्मी के बीच बिजली कटौती से लोगों का बुरा हाल रहा।
इन दिनों राज्य में लगातार बिजली कटौती हो रही है। पिछले दिनों राज्य के 11केवी के 646 फीडर की निगरानी की गई। इसमें पाया गया कि 376 फीडर को 20 घंटे से अधिक बिजली दी गई। जबकि 254 फीडर को 15 से 20 घंटे तो 10 फीडर को आठ से 15 घंटे बिजली दी गई। वहीं छह फीडर को आठ घंटे से भी कम बिजली दी गई। 11 केवी वाले इन फीडरों से शहर के कई मोहल्लों तो ग्रामीण इलाकों में लगभग एक प्रखंड को बिजली आपूर्ति होती है। इससे साफ है कि राज्य का एक बड़ा इलाका बिजली कटौती से जूझ रहा है।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दूबे ने कहा, ‘बिहार सहित देश के अन्य राज्य बिजली संकट से जूझ रहे हैं। रेलवे, कोयला व ऊर्जा मंत्रालय के बीच समन्वय नहीं होने के कारण बिजली संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है। यह मिसमैनेजमेंट है। देश में तीन लाख 99 हजार मेगावाट उत्पादन क्षमता और मांग दो लाख एक हजार मेगावाट की है। 60 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली घर बंद हैं। स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो आने वाले दिन और कठिन होंगे।’