सहारनपुर देवबंद : जमीयत उलेमा-ए-हिंद के इजलास में कॉंमन सिविल कोड का मुद्दा छाया रहा। दूसरा दिन ज्यादातर समय इसी मुद्दे पर चर्चा और ख्याल में बीता। प्रस्ताव में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट संसद में पेश करने की मांग के साथ दोहराया गया कि शरीयत में किसी भी प्रकार की दखल बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
मुसलिम पर्सनल लॉ अपनी जगह कायम है और रहेगा। मुसलिम समाज की शादियों और तलाक से लेकर अन्य मामलात मुसलिम पर्सनल लॉ से ही तय होते रहे हैं। यह हमारा सांवैधानिक हक है। कॉमन सिविल कोड सरकार लाती है तो उसका भी हम संविधान के दायरे में रहकर विरोध करेंगे।
हालातों से एक होने लगा कुनबा
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दो गुट हैं। 14 बरस पहले अरशद मदनी से नाइत्तेफाकी से उनके भतीजे महमूद मदनी ने इसी नाम से अलग संगठन बना लिया था। देवबंद का वर्तमान सम्मेलन उन्हीं की कयादत में हुआ लेकिन मौजूदगी मौलाना अरशद मदनी की भी रही। मौलाना अरशद मदनी ने संकेत दिए कि आने वाले समय में अच्छी खबर मिलेगी। ज्ञानवापी-मथुरा और कॉमन सिविल कोड के मद्देनजर मुसलिम समाज की बड़ी तंजीमों को एक प्लेटफार्म पर लाने की तैयारी है।
विरोध का फैसला
जमीयत उलेमा-ए-हिंद (महमूद मदनी गुट) की वर्किंग कमेटी में रविवार को प्रस्ताव पास हुआ कि मुसलमान वाराणसी की ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह से अपना दावा नहीं छोड़ेंगे। कॉमन सिविल कोड के विरोध का भी फैसला किया गया।
सम्मेलन में जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने समापन भाषण में तल्ख तेवर अपनाते हुए कहा कि मुल्क हमारा है, हमारे पूर्वजों ने हिंदुस्तान को आज़ाद कराने में बड़ी कुर्बानियां दी हैं। जिन्हें हमारे रहन-सहन, खाने, तालीम से नफरत है, वह मुल्क छोड़ चले जाएं। हम यहीं रहेंगे।
उन्होंने कहा कि जो हमें डराने की कोशिशें करते हैं, वह अपने लोगों को हमारा नाम लेकर डराने लगते हैं। हम नज़रियात और पालिसी से समझौता नहीं करेंगे। कानून कोई भी बना लिए जाएं, हम शरीयत नहीं छोड़ने वाले।