सरदारशहर, चूरु:वर्तमान समय में भारत के कई राज्य भयंकर गर्मी की मार झेल रहे हैं। ऐसे में यदि कोई राजस्थान की बात करे तो आमजन का मानस राजस्थान की तपती रेतीली धरती पर जाना स्वाभाविक है। ऐसी राजस्थान की रेतीली धरती और अपने बढ़ते तापमान के लिए वैश्विक पटल पर अपनी पहचान रखने वाले चूरू जिले के सरदारशहर नगर में सरदारशहर के लाल, तेरापंथ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा नियमित रूप से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने और मानसिक शांति प्राप्ति करने को हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं और गर्म हवाओं की थपेड़ों की परवाह किए बिना श्रद्धालु श्रीमुख से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में डुबकी लगाकर अपनी चेतना को निर्मल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हिटवेव में भी श्रद्धा का वेव हाई है।
बुधवार को सरदारशहर के तेरापंथ भवन के निकट बने युगप्रधान समवसरण में उपस्थित जनता को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म जगत की सम्पूर्ण निष्पत्ति होती है निर्वाण, मोक्ष की प्राप्ति। अनादि काल से आत्मा जन्म-मृत्यु के चक्रानुसार अनंत बार जन्म ले चुकी है और मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है। जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना ही मोक्ष, मुक्ति अथवा निर्वाण की प्राप्ति है। एक प्रश्न हो सकता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त हो सकता है? भव्य जीव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है तो एक प्रश्न पुनः हो सकता है कि भव्य जीव कौन होता है? धर्म में रमी हुई आत्मा भव्य होती होती है जो शुद्ध और निर्मल होती है। एक प्रश्न और किया जा सकता है कि ? आत्मा शुद्ध और निर्मल कैसे हो? तो इसका उत्तर होगा कि सरल और ऋजु आत्मा ही शुद्ध और निर्मल होती है। छल, कपट, लोभ आदि से युक्त आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती है। इसलिए आदमी को मोक्ष प्राप्ति के लिए अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए, इसके लिए सरलता और ऋजुता अपेक्षित है।
जीवन में लगे दोषों के परिमार्जन के लिए सरला और ऋजुता की परम आवश्यकता होती है। सरलता होती है तो आदमी निःसंकोच भाव से लगे दोषों का परिमार्जन कर अपनी आत्मा को शुद्ध बना सकता है। इसके लिए आदमी को अपने जीवन में लगे दोषों का सरल मन से प्रायश्चित्त लेकर आत्मा को शुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए। जिस तरह डाक्टर से कोई बार नहीं छिपाई जाती, उसी प्रकार प्रायश्चित्त प्रदाता से कोई दोष नहीं छिपाया जा सकता। गलती को सरलता से स्वीकार कर लेने से शुद्धि की बात हो सकती है। गृहस्थ जीवन में भी लेन-देन, व्यापार-व्यवसाय, बात-व्यवहार में सरलता, सच्चाई और ईमानदारी की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। यदि आदमी सच्चाई, सरलता को आत्मसात करता है तो फिर आत्मा शुद्धता की बात हो सकती है और कभी निर्वाण की प्राप्ति भी संभव हो सकती है।
आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित करते हुए मानव जीवन को सफल बनाने की प्रेरित किया। श्रीमती सपना लुणिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री के मंच से प्रवास स्थल की ओर प्रस्थित हुए तो मंच के पास से लेकर प्रवास स्थल तक मार्ग के दोनों ओर श्रद्धालु करबद्ध खड़े नजर आए। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री प्रवास स्थल पर पधारे। तपती गर्मी में भी आचार्यश्री का आशीर्वाद मानों श्रद्धालुओं को आंतरिक राहत प्रदान करने वाला बन रहा था।
मघवागणी के स्मारक पर पधारे आचार्यश्री महाश्रमण
इससे पूर्व प्रातः नगर भ्रमण के अंतर्गत आचार्यश्री जम्मड़ों की हवेली पधारे, जहां तेरापंथ के षष्टम आचार्यश्री मघवागणी का महाप्रयाण हुआ था। तत्पश्चात् उनके समाधि स्थल ‘मघवा स्मारक’ पधार कर गुरुदेव ने अपने पूर्वाचार्य का श्रद्धास्मरण किया।