हिसार कैंट, हिसार:जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को हिसार कैण्ट क्षेत्र में स्थित विद्या देवी जिन्दल स्कूल में पधारे तो विद्यालय के विद्यार्थियों ने विद्यालयी बैण्ड के साथ मंगल जयघोष करते हुए आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। अपने स्कूल में पदार्पण आह्लादित जिन्दल परिवार ने भी श्रीमती सावित्री जिन्दल के साथ आचार्यश्री का अपने स्थान में भावपूर्ण अभिनंदन किया। कल पूज्यप्रवर का हिसार शहर में मंगल पदार्पण होगा।
शनिवार को आचार्यश्री ने हांसी स्थित तेरापंथ भवन से मंगल प्रस्थान किया। हांसीवासियों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में आने वाले अनेक गांव के लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त हुआ। दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी और धूप की प्रचण्डता मानों पूरा बदन जलाने की क्षमता रखती है, किन्तु समता साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान थे। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री हिसार कैण्ट में स्थित विद्या देवी जिन्दल स्कूल परिसर में पधारे।
विद्यालय परिसर में स्थित ऑडिटोरियम में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को व विद्यार्थियों को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में ज्ञान का परम महत्त्व है। ज्ञान प्राप्ति के लिए अध्ययन और स्वाध्याय करते रहना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए अध्ययन किया जाता है। इससे ज्ञान प्राप्त होता है। इसके साथ ही अध्ययन से मन की एकाग्रता का भी विकास होता है। मन को सबसे चंचल कहा गया है। मन में इतने-इतने विचार आते हैं, जिनकी कोई अपेक्षा ही नहीं होती। अध्ययन के द्वारा मन एकाग्र हो सकता है। अध्ययन के द्वारा ज्ञान प्राप्त कर आदमी स्वयं सन्मार्ग पर स्थापित कर सकता है। अध्ययन द्वारा स्वयं सन्मार्ग पर स्थापित होकर दूसरों को भी सन्मार्ग पर स्थापित करने का प्रयास कर सकता है। इस प्रकार अध्ययन से ज्ञान प्राप्ति, मन की एकाग्रता, सन्मार्ग पर गति और दूसरों को सन्मार्ग पर चलने के लिए उत्प्रेरित करना-ये चार लाभ बताए गए हैं।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज इस विद्या संस्थान में आए हैं। यह हमारा परिचित स्थान है। यहां कितने प्रवास और प्रवचन हुए हैं। यह विद्या और ज्ञान की आराधना का एक स्थान है। विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार के निर्माण का भी प्रयास होता रहे। विषयों के ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान आदि का भी विकास होता रहे। इसके साथ विद्यार्थियों के जीवन में ईमानदारी, नैतिकता और अहिंसा की भावना रहे तो विद्यालय में ज्ञानार्थ प्रवेश और सेवार्थ प्रस्थान की बात हे सकती है। विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक व प्रबंधन के लोग जागरूक हो तो अच्छा विकास होता है।
कार्यक्रम में मुनि कमलकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। हिसार ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने ‘महाश्रमण अष्टकम्’ को प्रस्तुति दी। श्री जगदीश जिन्दल, जैन विश्व भारती की कुलाधिपति एवं जिन्दल स्कूल की संरक्षक श्रीमती सावित्री जिन्दल, एसडीएम अमरदीप जैन व तेरापंथी सभा-हिसार के अध्यक्ष श्री संजय जैन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।