लखनऊः भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ जब साल 2017 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तब अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि को लेकर काफी सतर्क थे। हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में बदले सियासी हालात के बाद वह अपने पुराने रूप में फिर से लौटते दिखाई देने लगे हैं। यह बदलाव उनके हालिया बयानों और फैसलों में साफतौर पर देखा जा सकता है। योगी आदित्यनाथ की अपनी पुरानी छवि में वापसी का यह सिलसिला उस समय में सामने आया है, जब यूपी भाजपा में आंतरिक मतभेद चरम पर है और यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने के मौके खोज रहा है?
दरअसल, बीते दिनों यूपी की राजनीति में, खासतौर पर योगी आदित्यनाथ के संदर्भ में कुछ ऐसे सियासी घटनाक्रम देखने को मिले, जिसने इस बार की ओर इशारा किया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी ‘समन्वयवादी प्रशासक’ की छवि को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। यह पहली बार तब दिखा जब उन्होंने राजधानी लखनऊ की दो हिंदू बहुल कॉलोनियों पंत नगर और इंद्रप्रस्थ नगर के लोगों को आश्वस्त किया कि सिंचाई विभाग के नोटिस के बाद भी उनके घरों को नहीं तोड़ा जाएगा। इससे पहले एलडीए ने लखनऊ के अकबर नगर इलाके में 24.5 एकड़ में फैले 1,169 घरों और 101 व्यावसायिक प्रतिष्ठानों समेत 1,800 ढांचों को ध्वस्त कर दिया था क्योंकि ये कुकरैल नदी के किनारे बाढ़ के मैदान पर अवैध रूप से बने थे।
कांवड़ यात्रा पर फैसला
कांवड़ यात्रा को लेकर भी योगी का एक फैसला काफी चर्चित रहा। मुजफ्फरनगर जिले की पुलिस ने आदेश जारी किया था कि सड़क के किनारे दुकानदारों को अपने प्रतिष्ठानों के बाहर अपना नाम लिखना होगा। इस निर्देश पर मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने के आरोप लगे। हालांकि, मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने दावा किया कि इससे टकराव को रोका जा सकेगा। हंगामे के बीच राज्य प्रशासन अपनी बात पर अड़ा रहा और एक हफ्ते बाद यह निर्देश राज्य के अन्य हिस्सों पर भी लागू कर दिया गया, जहां से कांवड़ यात्रा गुजरनी थी।
लव जिहाद का मुद्दा
इसके बाद यूपी सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन करने के लिए सदन में एक विधेयक पेश किया। इस विधेयक से उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 को और सख्त बना दिया गया। यूपी विधानसभा में इस विधेयक को पेश करते हुए योगी ने कथित लव जिहाद को खत्म करने के अपने इरादे को दोहराया। इतना ही नहीं, योगी ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि एंटी-रोमियो स्क्वॉड को फिर से ऐक्टिव करें, जिसे साल 2017 में राज्य की कमान संभालने के बाद उन्होंने पहली बार लॉन्च किया था। 2019 के आसपास जब ऐसी रिपोर्ट्स आई थीं कि स्क्वाड के लोग सार्वजनिक स्थानों पर जोड़ों को परेशान कर रहे हैं, तो इस टीम को निष्क्रिय कर दिया गया था।
सनातन को बचाने का आह्वान
योगी ने बीते दिनों राम मंदिर आंदोलन के ध्वजवाहक परमहंस रामचंद्र दास की प्रतिमा का अनावरण करते हुए सनातन धर्म को ख़तरे में डालने वाले संकट के ख़िलाफ़ एकजुट होने की अपील की। राम मंदिर के निर्माण का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह अंतिम मंज़िल नहीं है बल्कि एक पड़ाव है और सनातन धर्म को सुरक्षित करने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए। आदित्यनाथ ने बांग्लादेश संकट और पड़ोसी देशों में हिंदुओं की स्थिति पर भी बात की। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष वोट बैंक की राजनीति के कारण इस बारे में चुप है।
हिंदुत्ववादी नेता की छवि
बता दें कि योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक यात्रा अपने गुरु महंत अवेद्यनाथ के राजनीति से संन्यास लेने के बाद 1998 से शुरू हुई थी, जब वह गोरखपुर के सांसद बने थे। 26 साल की उम्र में वह उस साल लोकसभा के लिए चुने जाने वाले सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक बन गए थे। गोरखनाथ मठ से जुड़ाव और अपनी हिंदुत्ववादी नेता होने की छवि को चमकाने के लिए 2002 में उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नामक एक संगठन का गठन किया। अगले पाँच सालों में यह संगठन गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, संत कबीर नगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर और बलिया जैसे जिलों में फैल गया।
सीएम बनने पर बदली इमेज
हालांकि, साल 2017 में सत्ता में आने के बाद आदित्यनाथ ने अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की छवि को थोड़ा नरम किया था। सबसे पहले उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी को भंग कर दिया लेकिन हिंदुत्ववाद के कुछ अन्य हथकंडों से वह अपनी पुरानी छवि में भी जारी रहे। इस क्रम में उन्होंने कांवड़ यात्रियों पर फूलों की वर्षा करने के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग करने की प्रथा शुरू की। तब से यह प्रथा हर साल जारी है। आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खानों के खिलाफ भी कदम उठाया और उन्हें बंद करने के लिए मजबूर किया। अयोध्या में हर साल दीपोत्सव मनाने की परंपरा डाली।
दोबारा सत्ता में लौटे तब और नरम
साल 2022 में योगी जब फिर सत्ता में लौटे तो उनका रुख और नरम था। हिंदुत्ववाद की बजाय उन्होंने अपराध के खिलाफ अपनी छवि को पुख्ता करने की कोशिश की। उनका अपराध-विरोधी बुलडोजर अभियान खूब चर्चित हुआ। योगी ने अयोध्या, वाराणसी और मथुरा जैसे हिंदू तीर्थ स्थलों के विकास पर भी ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया और वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और मथुरा में कृष्णजन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित अदालती मामलों पर जब माहौल गर्म हुआ, तब भी उन्होंने बयानबाज़ी से परहेज़ किया।
पुरानी छवि में लौट रहे योगी
हालांकि लोकसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद यूपी में स्थिति बदल गई। पार्टी में उनके खिलाफ माहौल बनने लगा। उनके डिप्टी सीएम भी इशारों में उन पर हमले करने लगे। लगने लगा कि शीर्ष नेतृत्व योगी को हटाने पर विचार कर रहा है। ऐसे में प्रतिद्वंद्वियों के सामने अपनी आवाज़ बुलंद करने के साथ अब आदित्यनाथ पुराने ढर्रे पर लौटते दिख रहे हैं और अपनी हिंदुत्ववादी छवि को फिर से धार देने की कोशिश करने लगे हैं।