पटना:बिहार के सभी 23 सहकारी बैंकों के बोर्ड भंग हो जाएंगे। नाबार्ड ने सभी बैंकों को नए नियम के अनुसार बोर्ड के पुनर्गठन का निर्देश जारी कर दिया। खास बात यह है कि नए बोर्ड में अब पुराने अध्यक्षों को जगह मिलने की उम्मीद नहीं है। इसी के साथ नए नियम से उत्पन्न समस्याओं के अध्ययन के लिए बनी बैकुंठ मेहता कमेटी का कोई मतलब नहीं रह गया है। रिजर्व बैंक ने इनके सभी तर्कों को अनसुना कर दिया है।
इस तरह सहकारी बैंकों के संचालन के लिए बना केंद्र सरकार का नया नियम राज्य के इन बैंकों के प्रबंधन के गले की फांस बन गया है। नए नियम से सहकारी बैंकों के बोर्ड का पुनर्गठन हुआ तो वर्तमान बोर्ड के सदस्यों का लौटना संभव नहीं होगा। राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष रमेश चौबे के साथ चार अन्य बैंकों के अध्यक्ष की कुर्सी जाएगी। नए नियम में दो बार से ज्यादा कोई भी सदस्य लगातार नहीं बन सकता है। राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष चौबे रोहतास जिला सहकारी बैंक के बोर्ड से चुनकर आए हैं। उनका दो टर्म पूरा हो चुका है। इसी के साथ मुजफ्फरपुर बैंक के अमर पांडेय, वैशाली के बिशुनदेव राय और खगड़िया के राजेशजी का भी दो टर्म पूरा होने वाला है।
बोर्ड की अवधि भी घटाकर चार साल कर दी
इसके अलावा केन्द्र सरकार ने बोर्ड की अवधि भी पांच साल से घटाकर चार साल कर दी। ऐसे में दो टर्म अध्यक्ष रहने वाले भी आठ साल ही रह पाएंगे। इसके अलावा जिनका टर्म पूरा नहीं भी हुआ है, वे भी नए मानदंड में फिट नहीं हैं। लिहाजा अगर चुनाव हुआ तो सहकारी बैंकों का नया स्वरूप दिखेगा। राज्य के 23 सहकारी बैंकों में एक सुपौल सुपरसीड है। शेष 22 बैंकों में चयनित बोर्ड काम कर रहा है। लेकिन नाबार्ड ने सभी का चुनाव नए नियम के अनुसार करने का निर्देश जारी कर दिया है।
निदेशक मंडल में 51 प्रतिशत प्रोफेशनल रखना जरूरी
केन्द्र सरकार ने नए सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद कई नई व्यवस्था की है। इसी के तहत बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में भी बदलाव किया गया है। नए प्रावधान के अनुसार सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल में 51 प्रतिशत प्रोफेशनल लोगों को रखना जरूरी हो गया है। बिहार की समस्या यह है कि यहां निदेशक मंडल का चुनाव होता है। प्रारंभिक स्तर पर सहकारी संस्थाओं के लिए चुने गए व्यक्ति ही इसमें चुनाव लड़ते हैं। अब बिहार के निचले स्तर पर गठित पैक्स का चुनाव शायद ही कोई प्रोफेशनल लड़ता है। अगर ऐसे लोग चुने भी गए तो यह जरूरी नहीं कि उनकी रुचि बैंक निदेशक का चुनाव लड़ने में हो। ऐसे में ना तो निदेशक मंडल का गठन हो पाएगा और ना ही बैंक का वजूद बचेगा।
समस्याओं के अध्ययन को बनी कमेटी का मतलब नहीं
केन्द्र सरकार के सामने राज्य सरकार ने नए नियम से उत्पन्न समस्याओं को रखा तो इसके अध्ययन करने को एक समिति बनाई गई। गुजरात की बैकुंठ मेहता सहकारी समिति को समस्याओं का अध्ययन करने के लिए बनने वाली कमेटी का नेतृत्व दिया गया। बावजूद रिजर्व बैंक के निर्देश पर नाबार्ड ने नए सिरे बोर्ड गठन का निर्देश जारी कर दिया है।