चैत्र नवरात्रि का पूजन दो अप्रैल चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होगी। मंदिरों व घर-घर में मां आदिशक्ति की आराधना की तैयारियां शुरू हो गयी है। महानिशा पूजा आठ अप्रैल को होगी जबकि महाअष्टमी का व्रत नौ को रखा जाएगा। 10 को महानवमी का व्रत व हवन होगा। इसी दिन रामनवमी का पर्व भी धूमधाम से मनाया जाएगा। नवरात्र का पारण 11 अप्रैल को प्रातः काल में किया जाएगा। इस दिन दशमी मनायी जाएगी।
शहर के ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र झा ने बताया कि साल में चार बार नवरात्रि की पूजा होती है। अषाढ़ व माघ मास में दो गुप्त नवरात्रि, चैत्र माह में बासंतिक तो आश्विन में शारदीय नवरात्रि की पूजा होती है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि की शुरुआत पंडित धर्मेन्द्र झा ने बताया कि इसबार नवरात्र का आरंभ बेहद शुभ योग में हो रहा है जिसमें मां दुर्गा श्रद्धालु भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगी। इस बार नवरात्र का प्रारंभ सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग में हो रहा है। ऐसी मान्यता है कि ये दोनों ही योग बेहद शुभ फलदायी हैं। इन शुभ योग में नवरात्र का आरंभ होने पर श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है एवं हर कार्य की सिद्धि होती है। कहते हैं कि शुभ योग में की गई पूजा भक्तों को अभिष्ठ सिद्धि दिलवाती है। पूजन के क्रम में 10 अप्रैल को रवि पुष्य योग भी है। कार्य सिद्धि के लिए रवि पुष्य योग का होना फलदायी माना जाता है। इन योग में मां दुर्गा के व्रत करने के साथ ही यदि जातक आदित्य हृदय स्त्रोत का भी पाठ करता है तो ये व्रत बेहद शुभफलदायी साबित होता है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
- चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि दो अप्रैल को सुबह 11:58 मिनट तक कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त है। पंडित झा ने बताया कि अभिजीत मुहूर्त में 11.24 से 12.36 तक कलश की स्थापन की जा सकेगी। इस बार माता दुर्गा अश्व पर बैठकर आएंगी जबकि, महिष यानी भैंस पर बैठ कर प्रस्थान करेंगी।
माता का आगमन-गमन है अशुभ प्रभावकारी
- माता जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं उसके अनुसार वर्ष में होने वाली घटनाओं का भी आकलन किया जाता है। इस वर्ष कलश स्थापना शनिवार के दिन है। इसलिए माता घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है। घोड़े पर माता का आगमन शासन और सत्ता के लिए अशुभ माना गया है। इससे सरकार को विरोध का सामना करना पड़ता है और सत्ता परिवर्तन का योग बनता है। माता का गमन इस बार भैंस पर होगा। ज्योतिष में भैंसे को असुर माना गया है, ऐसे में देवी मां का भैंसे पर गमन रोग और शोक के साथ ही कुछ हद तक युद्ध की ओर भी इशारा करता है।
छठ पूजा की तैयारी भी चल रही साथ-साथ
- लोक आस्था के महापर्व छठ की तैयारियों में भी आस्थावान लोग जुट गए हैं। इसबार पांच अप्रैल को पुरानी संझत यानी नहाय-खाय का विधान होगा जबकि छह अप्रैल को लोहंडा यानी खरना होगा। सात मार्च को पहली यानी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा जबकि आठ मार्च को उदितमान सूर्य को अर्घ्य अर्पण कर व्रती पारण के साथ महापर्व का समापन करेंगी।