दिवाली भले एक दिन मनाई जाती है लेकिन यह पर्व पांच दिनों का होता है। यानि धनत्रयोदशी से शुरू होकर यम द्वितीया तक। शास्त्रत्तें में इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धनवंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है।
धनत्रयोदशी:-इसे धनतेरस भी कहते हैं। इस दिन का मुख्य संबंध यमराज की आराधना से है। यह पर्व 22 अक्तूबर शनिवार को मनाया जाएगा। आयुर्वेद के प्रवर्तक धनवंतरि की जयंती भी इसी दिन होती है। यम दीप जलाना इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण है। महावीर पंचांग के संपादक पं. रामेश्वर ओझा के अनुसार शाम को यमराज के निमित्त दीप जलाकर घर के दरवाजे के बाहर रखना चाहिए। इस दिन लक्ष्मी पूजन की परंपरा भी है। लोक मान्यता के अनुसार इस दिन स्वर्ण या रजत मुद्राएं अथवा बर्तन खरीदना शुभ होता है।
नरक चतुर्दशी-नरक चतुर्दशी को नरका चौदस और हनुमान जयंती के रूप में भी प्रतिष्ठा प्राप्त है। यह पर्व 23 अक्तूबर को मनाया जाएगा। शास्त्रतीय मान्यताओं के इस दिन शाम को चार बातियों वाला दीपक घर के बाहर कूड़े के ढेर पर जलाना चाहिए। खास यह कि दीपक पुराना होना चाहिए। इसके पीछे मान्यता यह है कि स्थान चाहे कोई भी हो शुभता का वास हर जगह है। समय विशेष पर उसका महत्व होता है। इस क्रिया से पूर्व प्रातकाल सरसों का तेल और उपटन लगाकर स्नान करना चाहिए। यमराज के निमित्त तर्पण करना न भूलें।
दिवाली:-दीपावली सनातनी परंपरा में रात में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में एक है। यह पर्व 24 अक्तूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। तीसरी महानिशा में शुमार कालरात्रि का पर्व जनसामान्य में दीपावली या दिवाली के नाम से प्रतिष्ठित है। दीपावली के दिन सूर्यास्त से अगले सूर्योदय के बीच का काल विशेष रूप से प्रभावी है। मोहरात्रि, शिवरात्रि, होलिका दहन, शरद पूर्णिमा की भांति ही दीपावली में भी संपूर्ण रात्रि जागरण का विधान है। कालरात्रि वह निशा है जिसमें तंत्र साधकों के लिए सर्वाधिक अवसर होते हैं।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा-कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट मनाया जाता है। इस दिन सभी छोटे-बड़े देवालयों में छप्पन भोग अर्पित होते हैं। इस वर्ष दीपावली के अगले दिन सूर्य ग्रहण से अन्नकूट 26 अक्तूबर को होगा। काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर में अन्नकूट की झांकी विश्वविख्यात है। पं. वेदमूर्ति शास्त्रत्ती के अनुसार ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तारपूर्वक अन्नकूट का महत्व बताया गया है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का विधान भी है लेकिन उत्तर भारत में काशी की परम्परा के अनुसार यह पूजन यम द्वितीया (भाई दूज) के दिन किया जाता है।
भाईदूज:-भाई दूज भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व है। यह पर्व 27 अक्तूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व रक्षाबंधन के भी पहले से सनातनी समाज का हिस्सा रहा है। स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण दोनों में ही इसकी महत्ता का वर्णन है। इस दिन प्रत्येक भाई का दायित्व है कि वह विवाहित बहन के घर जाए। उसके हाथ का पका भोजन ग्रहण कर सामर्थ के अनुसार द्रव्य, वस्त्रत्त्, मिष्ठान्न आदि भेंट करे। यदि बहन अविवाहित और छोटी है तो उसकी इच्छानुसार भेंट दे। लोक मान्यताओं में गोधन पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। इसी दिन कायस्थ समाज चित्रगुप्त पूजन भी करता है।