डेस्क। तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने सोमवार को सेक्युलिरज्म के ऊपर बयान देकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया। राज्यपाल ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा यूरोप से संबंधित है, इसका भारत के कोई लेना देना नहीं है। कन्याकुमारी के तिरुवत्तार में हिंदू धर्म विद्या पीठम के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए, रवि ने कहा कि इस देश के लोगों के साथ बहुत सारी धोखाधड़ी की गई है, और उनमें से एक यह है कि उन्हें धर्मनिरपेक्षता की गलत व्याख्या दी गई है। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है और इसे वहीं रहना चाहिए क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता की कोई जरूरत नहीं है।
यूरोप में धर्मनिरपेक्षता इसलिए आई क्योंकि चर्च और राजा के बीच लड़ाई थी, भारत “धर्म” से कैसे दूर रह सकता है? धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है और इसे वहीं रहने दें।
राज्यपाल की धर्मनिरपेक्षता पर की गई इस टिप्पणी को लेकर द्रमुक, वाम दलों और डीएमके ने राज्यपाल की आलोचना की है। राज्यपाल की बात पर विरोध जताते हुए डीएमके प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारत में सबसे अधिक आवश्यक अवधारणा है न कि यूरोप में। लगता है कि राज्यपाल महोदय ने संविधान का अध्ययन नहीं किया है। उन्हें संविधान पढ़ना चाहिए और देखना चाहिए कि उसमें 22 भाषाएं सूची बद्ध हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जो कि कुछ ही राज्यों में बोली जाती है। बाकी राज्यों में अन्य भाषाएं बोली जाती हैं। भाजपा के साथ समस्या यह है कि वे न तो भारत को जानते हैं, न ही संविधान को…वे कुछ भी नहीं जानते हैं। यही कारण है कि वे अपने दम पर सरकार भी नहीं बना सके।
सीपीआई नेता डी राजा ने भी राज्यपाल के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि मैं आरएन रवि के बयान की कड़ी निंदा करता हूं। वह धर्मनिरपेक्षता के बारे में क्या जानते हैं? वह भारत के बारे में क्या जानते हैं? वह एक राज्यपाल हैं…उन्हें संविधान का पालन करना चाहिए। भारत का संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है। उन्होंने कहा कि बी आर अंबेडकर ने जोरदार ढंग से धार्मिक अवधारणा को खारिज कर दिया था, उन्होंने तो यहां तक कहा था कि यदि हिंदू राष्ट्र सच हो गया तो यह देश के लिए एक आपदा होगा। धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म और राजनीति को अलग रखना है।