इस्लामाबाद:पाकिस्तान में हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है और शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने हैं, लेकिन एक बार फिर से देश में अस्थिरता के हालात बन रहे हैं। यही नहीं इस बार की अस्थिरता थोड़ी लंबी चल सकती है। अविश्वास प्रस्ताव में सरकार गिरने के बाद सत्ता से बेदखल हुए इमरान खान इस्लामाबाद तक लॉन्ग मार्च की तैयारी कर रहे हैं। इसके अलावा पाकिस्तानी रुपये में भी लगातार गिरावट जारी है और यह डॉलर के मुकाबले 200 रुपये तक के लेवल पर पहुंच गया है। वहीं इमरान खान के लगातार चल रहे जलसों के बीच पाकिस्तानी सेना ने तटस्थ रुख अपना रखा है। इससे भी शहबाज शरीफ की चिंताएं बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक पीटीआई के चेयरमैन इमरान खान नियाजी 25 मई की सुबह पेशावर से इस्लामाबाद के लिए लॉन्ग मार्च पर निकल सकते हैं। इसके जरिए इमरान खान खैबर पख्तूनख्वा से लेकर लेकर पंजाब तक अभियान चलाने की तैयारी है। यही नहीं सिंध और बलूचिस्तान में भी वह लगातार जलसे कर रहे हैं। हैदराबाद, लरकाना, कराची और सुक्कूर जैसे शहरों में उन्होंने प्रदर्शन किए हैं। पीटीआई के नेताओं का कहना है कि इमरान खान 3 जून को अपने अगले ऐक्शन प्लान का ऐलान करेंगे। माना जा रहा है कि इस दौरान वह इस्लामाबाद में धरने पर बैठने की घोषणा कर सकते हैं।
फिलहाल शहबाज शरीफ की सरकार इमरान खान से निपटने की पूरी तैयारी कर रही है। सिंध प्रांत में धारा 144 लागू कर दी गई है और देश भर में उनके समर्थकों पर कार्रवाई की जा रही है। पाकिस्तान में इस साल मार्च से ही राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा न्यूट्रल ही रहना चाहते हैं। उनकी मुख्य चिंता अफगानिस्तान से लगती सीमा को लेकर है, जहां तालिबान के सत्ता में आने के बाद से तनाव जारी है। इसकी वजह यह है कि सुन्नी पश्तून संगठन डूरंड लाइन को मान्यता ही नहीं देते हैं, जो दो देशों के बीच पख्तूनों की आबादी वाले क्षेत्र को बांटती है।
दरअसल शहबाद शरीफ की टेंशन यह है कि इमरान खान लगातार राष्ट्रवाद का कार्ड खेल रहे हैं और जल्दी चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं। उनकी युवाओं में अब भी अच्छी पकड़ है और वह नवाज शरीफ एवं जरदारी फैमिली को वंशवादी राजनीति का प्रतीक बताकर हमले करते हैं। इन लोगों पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार को लेकर उनके तीखे हमले यह संभावना बढ़ाते हैं कि वह एक बार फिर से पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। वहीं शहबाज शरीफ की कोशिश है कि उनकी सरकार अक्टूबर 2023 तक चल जाए और तब तक वह आर्थिक स्थितियों को थोड़ा संभाल लें।