नई दिल्ली:धनतेरस 23 अक्टूबर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर होगा। यह पर्व भगवान धनवंतरी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। आचार्य राकेश शुक्ल ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन चिकित्सा जगत के गुरु देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत का कलश लेकर के हाथ में प्रकट हुए थे। साथ ही लक्ष्मी इंद्र और कुबेर भी प्रकट हुए थे।
इस बार धनतेरस का पर्व बहुत खास रहेगा। इस बार एक साथ तीन पर्वों का योग पड़ रहा है। साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग इस पर्व के महत्व को बढ़ा रहे हैं। इस बार धनतेरस के दिन यानी 23 अक्टूबर को एक साथ ही धनतेरस प्रदोष व्रत और हनुमान जन्मोत्सव का संयोग पड़ रहा है। ऐसा लगभग 27 वर्षों के बाद हो रहा है। इसके अलावा दूसरी खास बात यह है पिछले काफी समय से वक्री चल रहे शनि देव इसी दिन मार्गी होंगे। इसका कई राशियों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। महालक्ष्मी की कृपा बनेगी। इस बार पूजा का शुभ मुहूर्त सायंकाल 5:40 से 8:50 के बीच का रहेगा।
धनतेरस पूजन विधि
धनतेरस की शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं। कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं। पूजा करते समय कुबेर मंत्र का जाप करना चाहिए। फिर धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसके बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करना चाहिए। माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को भोग लगाएं और फूल चढ़ाना चाहिए। धनतरेस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। शास्त्रों में वर्णित है की कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी की रात यम देवता का पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसलिए इस दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखा जाता है।