भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन कुश एकत्रित करने की परंपरा है। कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन घर लाया कुश परिवार को बुरी नजर से बचाता है।
कुश का सनातन धर्म के संस्कारों में विशेष महत्व माना गया है। पूजा-पाठ हो या फिर तर्पण प्रत्येक कार्य में कुश का प्रयोग किया जाता है। कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन प्रत्येक गृहस्थ को कुशा का संचय करना चाहिए। कुश उखाड़ने से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गंदे स्थान पर हो। इस दिन सालभर के धार्मिक कृत्यों के लिए कुश एकत्र की जाती है। कुश तोड़ते समय ‘हूं फट मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। कुशा के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं होती इसलिए इसे पवित्र माना जाता है। कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अंत में शिव का वास माना गया है। कुशा शुद्धता की प्रतीक है। हवन के पूर्व यज्ञ कुंड के चारों ओर कुशा बिछाई जाती है, उसे कुशस्तरण कहा जाता है। स्नान दान के समय में भी कुशा को हाथ में लेकर संकल्प करने की परंपरा है। कुशा के बने आसन पर बैठकर जप और तप करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से जप और तप पूर्ण फलदायी होता है। कुशा निकालने के लिए लोहे का प्रयोग न करें, लकड़ी से ढीली की हुई कुशा को एक बार में निकाल लेना चाहिए। खंडित कुशा का प्रयोग पूजा में नहीं किया जाता है। इस दिन पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती हैं। अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण किया जाता है और दान पुण्य का विशेष महत्व है।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।