भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी या परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन शेष शैय्या पर निद्रामग्न भगवान श्री हरि विष्णु शयन करते हुए करवट बदलते हैं। इसलिए इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी और वर्तमान एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी पर भगवान के वामन अवतार का व्रत-पूजन किया जाता है। मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से पूवजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन करना श्रेष्ठ है। कहा जाता है कि देवताओं ने अपना राज्य पुनः पाने के लिए इस दिन मां महालक्ष्मी का पूजन किया था। परिवर्तिनी एकादशी को वामन एकादशी, जलझूलनी एकादशी, डोल ग्यारस और जयंती एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन व्रत, पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत में पूरा दिन पूजा-पाठ में लगाएं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को दान दें। गंगा स्नान करें। मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोये थे। इसी कारण इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत में स्नान आदि के बाद स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। पूजा घर में एक चौकी पूर्व या उत्तर दिशा में पीला वस्त्र बिछाकर भगवान श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले भगवान श्रीगणेश जी की पूजा करें। इस दिन न चावल खाया जाता है ना पूजा पाठ में इस्तेमाल किया जाता है। इस व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते रहें। इस व्रत को करने से सुख, सौभाग्य, यश में वृद्धि होती है।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।