नई दिल्ली:दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविलाइजेशनल स्टडीज (सीसीएस) द्वारा स्वातंत्र्य वीरों की स्मृति को सजीव बनाए रखने के प्रयासों की शृंखला में काकोरी प्रतिरोध के 100 वर्ष होने के अवसर को इसके शताब्दी वर्ष समारोह के रूप में 08 अगस्त 2024 से 09 अगस्त 2025 तक मनाने का संकल्प लिया गया है। इसका उद्घाटन कार्यक्रम 08 अगस्त को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया जाएगा।
केन्द्र के निदेशक रवि शंकर ने बताया कि अंग्रेज शासकों द्वारा भारतीयों से जबरन वसूली व अन्य रूप में लूटे गये धन को वापस लेने के उद्देश्य से क्रांतिकारियों द्वारा 09 अगस्त 2025 को काकोरी के निकट अंग्रेजी राज के माल असबाब वाले ट्रेन पर किये गये आक्रमण की घटना भारत के भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सशस्त्र प्रतिरोध की दमदार उपस्थिति का एक प्रतीक थी और इस बात की द्योतक भी कि विदेशी शासन के विरुद्ध भारतीय संघर्ष केवल अहिंसक या आवेदन-प्रतिवेदन वाला ही नहीं रहा है बल्कि संघर्ष के चरम तक जाने के लिए सदैव संवेदनशील रहा है। इसीलिए सभ्यता अध्ययन केंद्र ने काकोरी सशस्त्र प्रतिरोध की शताब्दी पूर्ति को व्यापक समारोह का स्वरूप देने का निर्णय लिया है।
उन्होंने आगे बताया कि 1925 में भारत के क्रांतिकारियों ने अपने शौर्य, संकल्प, साहस, स्वातंत्र्यप्रेम एवं त्याग का अद्भुत परिचय देते हुए 08 डाउन, सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में सशस्त्र हस्तक्षेप कर ब्रिटिश सरकार के खजाने को हस्तगत कर लिया। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने इसमें भाग लिया और काकोरी के पास ट्रेन रोककर 4679 रुपये, 01 आना और 06 पाई लूट लिए।
एक छोटी सी जगह पर हुई इस घटना द्वारा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने के अर्थ व आयाम बहुत व्यापक निकले। इस घटना के बाद एक ओर जहाँ क्रांतिकारी गतिविधियों को नयी ऊर्जा मिली और क्रांतिकारी गतिविधियों में तीव्रगति से वृद्धि हुयी वहीं दूसरी ओर अंग्रेज सरकार इस घटना से पूरी तरह हिल गयी और उसने इसे बहुत गंभीरता से लिया। मात्र 4000 रुपये की लूट पर कार्रवाई के लिए सरकारी कवायद में 08 लाख रुपये से अधिक खर्च हुए। इस क्रम में अंग्रेजी हुकूमत ने 40 लोगों को बंदी बनाया एवम 29 पर अभियोग चलाया। चार क्रांतिकारियों को फांसी दी गयी और दो को कालापानी सहित 16 अन्य लोगों को 04 से 14 वर्ष तक की अलग-अलग सजा सुनायी गयी। इसे देखते हुए आज इस घटना की शताब्दी पूर्ति के अवसर पर इसका नए सिरे से विश्लेषण आवश्यक है। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष के हेतु धन जुटाने के उद्देश्य से रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में बनी इस योजना में उस समय के प्रखर क्रांतिकारी अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्र लाहिडी, चंद्रशेखर आजाद, शचींद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मन्मथ नाथ गुप्त, मुरारीलाल गुप्ता, मुकुंदी लाल तथा वनवारी लाल शामिल थे।
रवि शंकर ने बताया कि काकोरी सशस्त्र प्रतिरोध शताब्दी वर्ष संबंधी कार्यक्रम पूरे वर्ष देश के अलग-अलग स्थानों पर करने की योजना है। इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य भारत के सशस्त्र स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि मे काकोरी प्रतिरोध का महत्व और परवर्ती सशस्त्र क्रांतियों पर इस घटना के प्रभाव इत्यादि के संबंध मे अकादमिक विमर्श स्थापित करना और इन विषयों पर अब तक प्रचलित तथ्यहीन धारणाओ मे सुधार करना है। इसके तहत भारतीय स्वतंत्र संग्राम की सशस्त्र क्रांति की धारा में काकोरी की भूमिका पर केंद्रित विचार गोष्ठियाँ, कार्यशालाएं इत्यादि करने के साथ साथ क्रांतिकारियों पैतृक निवास आदि जैसी उनकी धरोहरों को संरक्षित करने तथा उन्हें राष्ट्रीय स्मारक के रूप में स्थापित करने के लिए आवश्यक प्रयास करना शामिल है। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाएगा तथा काकोरी क्रांति से संबंधित पुस्तकों आदि का प्रकाशन भी किया जाएगा।
राजधानी दिल्ली के बाद इस सशस्त्र प्रतिरोध के घटना स्थल काकोरी, घटना के प्रमुख नायक श्री रामप्रसाद बिस्मिल व उनके दो अन्य साथियों के शहर शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) तथा अन्य सबंधित/उपयुक्त स्थानों पर भी कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इनमे से कुछ कार्यक्रमों को इस क्रांति के नायकों से सम्बद्ध स्थानों और विशिष्ट तिथियों के आसपास भी किए जाने का प्रयास है। इन कार्यक्रमों के स्वरूप में संगोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पुस्तक प्रकाशन आदि का समावेश रहेगा।
आयोजक के बारे में
सेंटर फॉर सिविलाइजेशनल स्टडीज यानी सभ्यता अध्ययन केन्द्र एक दिल्ली स्थित शोध संस्थान है। यह एक पंजीकृत पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है। केंद्र द्वारा दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड में अध्ययन केंद्र चलाए जा रहे हैं। केंद्र ने गत छह वर्षों में पचास से अधिक व्याख्यानों, गोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन किया है। कोरोनाकाल के विकट अवसर पर केंद्र ने विभिन्न विषयों पर प्रथम लॉकडाउन से लेकर आज तक सौ से अधिक वेबिनारों का आयोजन किया है। केंद्र द्वारा सभ्यता संवाद नामक एक त्रैमासिक शोध पत्रिका का भी प्रकाशन किया जा रहा है।