शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा ने 16 कलाओं की छटा बिखेरता है। इस साल शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर की थी। इस दिन से कार्तिक का पावन महीना शुरू होता है। भगवान विष्णु की अराधना के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। कार्तिक का महीना कार्तिक पूर्णिमा पर दिवाली के बाद समाप्त होता है। कार्तिक के महीने में ही दिवाली, दशहरा, करवा चौथ, अहोई अष्टमी व्रत और देव उठनी एकादसी मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत की बारिश होती है। पारंपरिक मान्यताओं के तहत श्रद्धालु खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं। रातभर अमृत की बूंदें खीर में पड़ती हैं, जिसे श्रद्धालु सुबह ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि यह खीर ग्रहण करनेवाले को आरोग्यता व दीघार्यु की प्राप्ति होती है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सुबह में सत्यनारायण भगवान की कथा करते हैं। इसके बाद कार्तिक मास की एकादशी, जिसे देवठानी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते है, इस दिन तुलसी विवाह संपन्न किया जाता है। इस दिन श्रीहरि की पूजा, भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह किया जाता है।
प्रबोधिनी एकादशी के पदिन भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना और तुलसी से विवाह होता है। माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार माह की गहरी निद्रा से उठते हैं। भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी का व्रत रखा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था। इस दिन बंगाली समुदाय में लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। इसे मां लक्खी पूजा कहते हैं। इस दिन पांच तरह के फल और पांच तरह की मिठाइयां मां लक्ष्मी को अर्पित की जाती हैं।