सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग का विधान है। कालांतर में ऋषि-मुनि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तप किया करते थे। इस दौरान तपस्वी मंत्र जाप करते थे। कलयुग में भी सुमिरन कर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। तुलसीदास ने अपनी रचना ” रामायण” में भी ईश्वर प्राप्ति का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है “कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा”। इसका भावार्थ यह है कि कलयुग में महज सुमिरन कर ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक समय में लोग केवल पूजा करने के दौरान मंत्र जाप करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मंत्र जाप करने से दुख संकट, रोग, व्याधि और चिंता दूर होती है। इसके लिए सनातन शास्त्र में भिन्न-भिन्न मंत्रों का वर्णन किया गया है। अगर आप भी ईश्वर प्राप्ति हेतु मंत्र जाप करते हैं, तो यह जानना जरूरी है कि मंत्र जाप कितने प्रकार के होते हैं और किसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मंत्र तीन प्रकार के होते हैं, जो क्रमशः मानसिक, वाचिक और अपांशु मंत्र जाप हैं। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
अपांशु मंत्र जाप
यह जाप मानसिक और वाचिक मंत्र जाप का मिश्रण होता है। इस दौरान साधक बिना उच्चारण के मन ही मन मंत्र जाप करता है। इसमें साधक के होंठ से मंत्र जाप करने का पता चलता है। वहीं, मंत्र जाप किसी अन्य व्यक्ति को सुनाई नहीं देता है।
वाचिक मंत्र जाप
वर्तमान समय में लोग वाचिक जाप करते हैं। इसमें साधक जोर-जोर से मंत्र जाप करता है। आसान शब्दों में कहें तो उच्च स्वर में मंत्र जाप करता है। आमतौर पर पूजा और यज्ञ के दौरान वाचिक मंत्र जाप करते हैं।
मानसिक मंत्र जाप
मानसिक मंत्र जाप सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसमें साधक मंत्रों का उच्चारण मुख से नहीं, बल्कि मन से करता है। इस जाप में साधक के होंठ नहीं हिलते हैं। सामने बैठे व्यक्ति को भी मानसिक मंत्र जाप का पता नहीं चलता है।
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