प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से देश को संबोधित करते हुए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) की पुरजोर वकालत की। यह एक ऐसा मुद्दा है जो भाजपा के कोर एजेंडे में लंबे समय से शामिल है। लेकिन इस बार उन्होंने इसे एक नया नाम दिया—”सेकुलर कोड”। इस नामकरण ने इस मुद्दे पर नई बहस को जन्म दिया है, और इसे समझना महत्वपूर्ण है कि पीएम मोदी ने इसे क्यों और कैसे पेश किया।
समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून हो, जो उनकी जाति, धर्म, या लिंग के आधार पर भिन्न न हो। वर्तमान में, भारत में विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं, जो विवाह, तलाक, संपत्ति, और उत्तराधिकार जैसे मामलों में भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, और पारसी समुदायों के अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं, जिनका पालन वे करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इस पर जोर देते हुए कहा कि वर्तमान में लागू नागरिक संहिता वास्तव में सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण हो सकती है। उन्होंने कहा कि देश का एक बड़ा वर्ग मानता है कि यह संहिता विभाजनकारी है, और इसे बदलने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उन्होंने उच्चतम न्यायालय के उन आदेशों का भी उल्लेख किया जिसमें समान नागरिक संहिता पर विचार करने की बात कही गई थी। पीएम मोदी का कहना था कि इस मुद्दे पर देशव्यापी गंभीर चर्चा की जानी चाहिए, ताकि सभी अपने विचार रख सकें और एक मजबूत सहमति बनाई जा सके।
नया नामकरण: “सेकुलर कोड”
प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता को “सेकुलर कोड” के नाम से पेश किया। इस शब्द का चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भाजपा ने एक नया संदेश देने की कोशिश की है। अक्सर विपक्षी दल भाजपा पर यह आरोप लगाते हैं कि वह सांप्रदायिकता फैलाने के लिए इस मुद्दे को उठाती है। लेकिन अब जब भाजपा ने इसे “सेकुलर कोड” कहा है, तो उन्होंने विपक्ष को इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर किया है कि वे इसके विरोध में क्यों हैं।
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, एनसीपी जैसे दल अक्सर खुद को धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन जब समान नागरिक संहिता की बात आती है, तो ये दल अक्सर इस मुद्दे से बचते हुए दिखते हैं। पीएम मोदी का इस मुद्दे को “सेकुलर कोड” कहना, दरअसल, विपक्ष को एक चुनौती है कि अगर वे वाकई धर्मनिरपेक्षता के समर्थक हैं, तो वे इस कोड का समर्थन क्यों नहीं कर रहे हैं?
भाजपा के तीन कोर मुद्दे
भाजपा के लिए तीन कोर मुद्दे रहे हैं—राम मंदिर, आर्टिकल 370, और समान नागरिक संहिता। 10 साल के केंद्रीय शासन के दौरान भाजपा ने राम मंदिर और आर्टिकल 370 के मुद्दों को सफलतापूर्वक पूरा किया। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हो रहा है, और भाजपा इसे अपनी बड़ी जीत के रूप में देखती है। आर्टिकल 370 को जम्मू और कश्मीर से हटाकर, भाजपा ने अपने एक और प्रमुख चुनावी वादे को पूरा किया।
अब, समान नागरिक संहिता का मुद्दा भाजपा के एजेंडे में अगला बड़ा कदम है। इस मुद्दे को उठाकर भाजपा का लक्ष्य अपने कोर वोटर बेस को लामबंद करना और समाज के कुछ वर्गों में ध्रुवीकरण करना हो सकता है। मुस्लिम समुदाय में इस मुद्दे को लेकर विभाजन हो सकता है, जो भाजपा के लिए राजनीतिक लाभ का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष
पीएम मोदी द्वारा लाल किले से समान नागरिक संहिता की वकालत और इसे “सेकुलर कोड” के रूप में प्रस्तुत करने का उद्देश्य सिर्फ एक कानूनी सुधार नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक रणनीति भी है। इस नामकरण ने इस मुद्दे पर एक नई बहस को जन्म दिया है, और विपक्ष को सोचने पर मजबूर किया है कि वे इस मुद्दे पर कहां खड़े हैं।
आने वाले समय में भाजपा इस मुद्दे पर और आक्रामक हो सकती है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा भारतीय राजनीति में कितना बड़ा मोड़ लाता है।