हाल ही में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मंत्रालयों में शीर्ष पदों के लिए लेटरल एंट्री के माध्यम से सीधी बहाली का विज्ञापन जारी किया गया था, जिसे विपक्ष के विरोध के बाद वापस ले लिया गया। यह कोई पहला मौका नहीं था जब केंद्र सरकार ने अधिकारी स्तर के पदों को भरने के लिए लेटरल एंट्री का रास्ता अपनाने की कोशिश की थी। इससे पहले, 2011 में मनमोहन सिंह की सरकार ने छठे केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिश पर संयुक्त सचिव स्तर पर 10% पदों को लेटरल एंट्री के जरिए भरने का प्रस्ताव दिया था। इस संदर्भ में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा किया गया है।
लेटरल एंट्री की पृष्ठभूमि
लेटरल एंट्री की अवधारणा, जिसमें बाहरी विशेषज्ञों को सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता है, का उद्देश्य ऐसे पदों के लिए विशेष ज्ञान और तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग करना है। छठे वेतन आयोग ने कुछ ऐसे पदों की पहचान की थी, जिनके लिए तकनीकी या विशेष ज्ञान की आवश्यकता थी और इसके आधार पर लेटरल एंट्री की सिफारिश की गई थी। इस सिफारिश को अमल में लाने के लिए जनवरी 2011 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने एक नोट जारी किया था। इसके अनुसार, यूपीएससी द्वारा उम्मीदवारों की सीवी और साक्षात्कार के आधार पर चयन किया जाना था।
सरकार की योजना और विरोध
जून 2013 में, डीओपीटी, व्यय विभाग, और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने इस सिफारिश की समीक्षा की थी और यूपीएससी ने इस पर अपनी सहमति दी थी। इसके बाद, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से ऐसे पदों की पहचान करने के लिए कहा गया, जिनके लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है।
28 अप्रैल 2017 को पीएमओ में हुई एक बैठक में लेटरल एंट्री योजना पर चर्चा हुई थी। इस बैठक में लेटरल भर्ती प्रक्रिया को यूपीएससी के दायरे से बाहर रखने और दो चयन समितियों के तहत संचालित करने का निर्णय लिया गया। एक समिति, जिसका नेतृत्व कैबिनेट सचिव करता है, को संयुक्त सचिवों के चयन का जिम्मा सौंपा गया था।
संशोधन और भविष्य की दिशा
हालांकि, 11 मई 2018 को डीओपीटी के एक अधिकारी ने कहा कि यदि इन पदों को इस मार्ग से भरा जाना है तो यूपीएससी विनियमन में संशोधन करना आवश्यक होगा। इसके बाद, सरकार ने इस पर पुनर्विचार किया और एक साल के भीतर ही लेटरल एंट्री भर्ती को यूपीएससी को सौंपने का फैसला किया। 1 नवंबर 2018 को यूपीएससी ने इस प्रक्रिया को लागू करने की सहमति दी और कहा कि प्रत्येक पद के लिए एक उम्मीदवार की सिफारिश की जाएगी और दो अन्य नामों को आरक्षित सूची में रखा जाएगा।
यूपीएससी ने इसे एक बार की प्रक्रिया के रूप में माना और इसे हर साल जारी रखने वाली नियमित प्रक्रिया नहीं माना। इस तरह, लेटरल एंट्री की प्रक्रिया भारतीय सरकारी सेवा में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है, जहां विशेषज्ञता और अनुभव को प्राथमिकता दी जा रही है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
लेटरल एंट्री को लेकर सरकार की यह पहल यह बताती है कि वर्तमान प्रशासन अपनी कार्यशैली में सुधार और विशेषज्ञता को महत्व देने की दिशा में अग्रसर है। वहीं, विपक्ष और अन्य आलोचकों के लिए यह एक चिंता का विषय भी है, जो इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और इसकी दीर्घकालिक प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं।