लाहली, रोहतक:तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ हरियाणा में विहरण कर रहे हैं। सन 2014 के पश्चात पुनः इस क्षेत्र में आचार्य प्रवर का आगमन यहां के श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह उमंग लेकर आया है। प्रतिदिन आसपास के क्षेत्रों से सैंकड़ों श्रद्धालु आचार्यप्रवर के सानिध्य में दर्शनार्थ एवं सेवा हेतु उपस्थित हो रहे हैं। रोहतक से विहार के पश्चात आचार्यश्री का भिवानी, हांसी, हिसार आदि क्षेत्रों में विहार-प्रवास निर्धारित है।
आज प्रातः अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रोहतक स्थित जन सेवा संस्थान निःशुल्क पब्लिक स्कूल से मंगल विहार किया। गत सायं तेरापंथ भवन से विहार कर पूज्य प्रवर यहां पधारे थे। संस्थान द्वारा संचालित अनाथालय में अक्षम बच्चों को पावन मंगलपाठ प्रदान कर पूज्यप्रवर गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए। मार्गस्थ डोभ में चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में आचार्यवर पधारे जहां स्थानकवासी आम्नाय की साध्वी सुरुचि म.सा. आदि ठाणा-3 ने गुरूदेव का स्वागत किया। कुछ क्षण वहां विराज कर आचार्यप्रवर लगभग 12 किमी. विहार कर लाहली ग्राम के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे। विद्यालय से जुड़े शिक्षकों आदि ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय प्रांगण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर ने गौतम के नाम संदेश देते हुए कहा है-अपना क्षण मात्र समय भी प्रमाद में नहीं गंवाना चाहिए। यह हम सभी के लिए पालनीय है। मानव जीवन दुर्लभ है। यह अवसर अभी हमें प्राप्त है तो इसे व्यर्थ में नहीं गंवाना चाहिए। मानव जीवन की प्राप्ति अवसर की प्राप्ति है, यह बीत जाए तो फिर मानव जीवन पता नहीं कब प्राप्त हो। इसलिए आदमी को अपने जीवन के सुफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मनुष्य जीवन को एक वृक्ष मान लें तो इस पर छह प्रकार के फल लगते हैं तो मानना चाहिए कि मानव जीवन सुफल हो गया। इसका पहला फल है-जिनेन्द्र पूजा- आदमी को वीतराग भगवान जिनेश्वर की भक्ति करनी चाहिए। अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता और पवित्र आत्माओं को श्रद्धा के साथ स्मरण और नमस्कार करना चाहिए। मानव जीवन रूपी वृक्ष का दूसरा फल है-गुरु की पर्युपासना। गुरु अरिहंत के प्रतिनिधि होते हैं। उनकी सेवा, उपासना का प्रयास करना चाहिए। तीसरा फल है-सत्वानुकंपा। आदमी को प्राणियों के प्रति दया, करुणा की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। दया का भाव सुखों की खान है। यह प्रयास होना चाहिए कि अपनी ओर से किसी को कष्ट न हो। छोटे-छोटे जीवों और पशु-पक्षियों के प्रति भी दया, करुणा की भावना का विकास होना चाहिए। अगर हो सके तो किसी का कल्याण करने का प्रयास करें, कभी तकलीफ देने का प्रयास न करें। चौथा फल है-सुपात्र दान। संयमी साधु को दान देने का प्रयास करना चाहिए। पांचवां फल है-गुणानुराग। गुणों के प्रति प्रमोद भाव रखें। किसी से मिलें तो उसके गुणों का बखान करने का प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन रूपी वृक्ष का छठा फल है-श्रुतिराग…। आदमी को शास्त्रों में वर्णित धर्म को सुनने के लिए ऋषि-मुनियों, आचार्यों के प्रवचन सुनने का प्रयास करना चाहिए। यह छह फल मानव जीवन रूपी वृक्ष पर लगते हैं तो मानना चाहिए कि मानव जीवन सुफल हो गया।
कार्यक्रम में स्थानीय सरपंच श्री राजेश मल्होत्रा, कलानोर के श्री आई.पी. जैन, श्रीमती जुही जैन, वीना जैन, श्री श्रीपाल जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी।