कोलकाता:संदेशखाली की घटना से शुरू हुआ स्थानीय आंदोलन क्या सिंगुर, नंदीग्राम की तरह राजनीतिक रूप से असरदार हो सकता है? क्या इनकी कोई तुलना भी है? अतीत में सत्ता बदलने के लिए जिस तरह से संघर्ष और आंदोलन के जरिए सियासी जमीन ममता बनर्जी ने तैयार की थी, क्या संदेशखाली ने भाजपा को वही मौका दे दिया है। इस तरह की कई सियासी चर्चाओं के बीच पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों की व्यूह रचना में संदेशखाली का मुद्दा काफी अहम हो गया है।
चुनाव के ठीक पहले सामने आए इस मुद्दे ने तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी की निजी तौर पर चिंता बढ़ा दी है। डैमेज कंट्रोल की कोशिश हो रही है लेकिन भाजपा इस मुद्दे को गरम बनाए रखते हुए चुनाव की रणनीति को इसके आसपास रखना चाहती है। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में भी इसकी झलक साफ मिलेगी। हालांकि ममता अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दे चुकी हैं कि सिंगुर, नंदीग्राम की इससे कोई तुलना नहीं हो सकती।
मतदाताओं को प्रभावित कर सकता मुद्दा
तृणमूल नेता भाजपा शासित राज्यों में महिला उत्पीड़न का मामला उठाकर पलटवार कर रहे हैं। 10 मार्च को बड़ी रैली में ममता भाजपा के सारे आरोपों का जवाब देंगी। संभवतः इसके पहले वह संदेशखाली का दौरा भी करें लेकिन पार्टी अंदरूनी स्तर पर महसूस कर रही है कि यह मुद्दा राजनीतिक रूप से राज्य में मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है।
राजनीति और छवि पर असर
महिलाओं के सड़क पर आने से ममता की चिंता बढ़ी है इसलिए शेख शाहजहां पर कार्रवाई को ढाल बनाकर बचने की कोशिश हो रही है। हालांकि जानकार मानते हैं कि इस मुद्दे ने ममता की राजनीति और उनकी छवि पर असर डाला है। मुख्यमंत्री ममता ने विधानसभा में कहा था कि उस इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गढ़ रहा है। तृणमूल का कहना है कि भाजपा इसे हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाना चाहती है और कोशिश मतों के ध्रुवीकरण की है जबकि भाजपा का कहना है कि यह पश्चिम बंगाल में अपराध के राजनीतिक गठजोड़ का उदाहरण है।
दांव-पेच जारी
फिलहाल पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीट में जीत-हार पर यह मुद्दा कितना असर डालेगा, अभी कहना मुश्किल है लेकिन हर तरह के दांव-पेच जारी हैं। पिछले चुनाव में ममता की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस को 22 सीट मिली थी। वहां भाजपा को 18 और कांग्रेस को दो सीट पर जीत मिली थी। इस बार भाजपा पूरा जोर अपनी संख्या बढ़ाने पर लगा रही है। वहीं शरद पवार सहित विपक्ष के कई नेताओं ने ममता को राजनीतिक परिस्थिति के मुताबिक विपक्षी एकता के साथ चुनाव लड़ने की सलाह दी है।