प्रवचन माला में मुनि श्री अतुल कुमार जी ने कहा हीन भावना यानी औरों के मुकाबले स्वयं को छोटा और असफल महसूस करना। इसका संबंध आपकी संगत से हो सकता है। हमारे अंदर हीन भावना आने के दो प्रमुख कारण होते हैं, जब हमारा सोचा हुआ हो नहीं पाता और दूसरा जब कोई हमसे ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है। हीन भावना ऐसा द्वंद है जिसमें हमें अपनी समस्याओं से परेशानी कम और दूसरों की उन्नति से परेशानी ज्यादा होती है। सबसे पहले तुलना में जीना बंद करें। नकारात्मक सोच वाले लोगों से मिलना जुलना तत्काल बंद कर दें। नकारात्मक लोग वायरस जैसे और सकारात्मक लोग वैक्सीन जैसे होते हैं। हार्ट अटैक का आदमी बच सकता है, कैंसर का आदमी बच सकता है पर नेगेटिव आदमी ना बचता है ना बचने देता है। वो अपने इर्द-गिर्द के कम से कम बीस किलोमीटर रेडियस को करप्ट करता है। उसे हर अच्छाई में बुराई नजर आती है। आत्मविश्वास में कमी हीन भावना का प्रमुख लक्षण है। इससे ग्रस्त व्यक्ति निर्णय लेते हुए डरता है। नया काम शुरू करने के पहले ही उसे असफलता की चिंता सताने लगती है। लोगों से मिलने जुलने में संकोच और अपनी बॉडी इमेज को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण हीन भावना के प्रमुख लक्षण हैं। इस समस्या से ग्रस्त लोग अपने रंग-रूप, बोलचाल, कद-काठी और पहनावे से हमेशा असंतुष्ट रहते हैं। भगवान के गले में पड़े हुए फूलों से भगवान के पैरों में पड़े हुए फूलों ने पूछा अरे मित्र आपने ऐसा क्या पुण्य किया जो आपको ये स्थान मिला तब भगवान के गले में पड़े फूलों ने कहा हमें ये स्थान पाने के लिए सुइयों से कलेजा छिदवाना पड़ा। कहने का आशय है कि जब आप कुछ खोतें हैं तो कुछ बड़ा पा जाते हैं। हीन भावना से बाहर निकलने के लिए सबसे पहले अपने आप में विश्वास जगाएं कि आप यह कर सकते हैं। अपने आप से कहिए कि यह काम कठिन है, पर असंभव नहीं। अपने द्वारा की हुई पुरानी गलतियों पर ज्यादा चिंता ना करें। उन्हें अपने विचार कोष से बाहर कर दें और इतनी दूर फेंक दें कि उनका प्रभाव आप पर ना पड़े। सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण कुंजी है- आत्मविश्वास। अपने अंदर के निरुत्साह और हीन भावना को दूर करने के लिए अंदर के डर को निकाल फेंके। हमें अपने आप को उत्साहित करने के लिए समस्या से बचने की तरकीब सोचने की बजाय तूफानों से लड़ने की आदत डालना चाहिए क्योंकि लड़ने के लिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होती बस कमर कस कर खड़े हो जाइए, हिम्मत अपने आप आपकी नसों में दौड़ने लगेगी, आंखों में चमक आ जाएगी। समाज तो आप पर हंसेगा ही क्योंकि यही उसकी नियत है किंतु आपको उस अवस्था में पहुंचना होगा जहां समाज का ताना-बाना आपको प्रभावित ना कर सके और ऐसा कुछ करना होगा जिससे कि हंसने वाले ही आपकी पीठ थपथपाएं। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से हीन भावना को नहीं अपनाता है। समाज की संरचना अत्यंत ही जटिल है। यहां पर प्रत्येक शब्द के पीछे एक भाव होता है और इस भाव में श्रेष्ठता और हीनता की गंध घुली होती है। हीन भावना व्यक्तिगत होती है किंतु इसका बीज तथाकथित समाज बोता है। यह एक संघर्ष है जो आपको करना भी होगा। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो जिंदगी भर रोने से भी कुछ नहीं होगा। हीन भावना हमारी दुश्मन हैं। समाज की मानसिकता अजीबोगरीब है, जो आज आपका मजाक बना रही है यदि आप कुछ बड़ा हासिल कर लेंगे तो वही आपको अपने सर पर बिठा लेंगे। इतिहास गवाह है हीन भावना को दूर करने के लिए प्रगतिशील व्यक्तियों ने सदैव संघर्ष किया है।
मुनि श्री रविंद्र कुमार जी ने मंगल पाठ सुनाया। प्रवचन में काफी अच्छी संख्या में लोग उपस्थित रहे।