पाटण:गुजरात की धरा पर धर्म, अध्यात्म व मानवीय मूल्यों की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगलवार को पाटण जिला मुख्यालय स्थित हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में पधारे तो पूरा विश्वविद्यालय परिसर आध्यात्मिक वातावरण से आच्छादित हो गया। विभिन्न विषयों के ज्ञान के स्थान में आध्यात्मिक ज्ञानगंगा प्रवाहित कर आचार्यश्री ने विश्वविद्यालय परिवार को मानों जीवनोपयोगी नवीन खुराक प्रदान कर दी, जो उन्हें आजीवन अभिप्रेरित करती रहेगी।
मंगलवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में सूर्योदय के कुछ समय तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी कमलीवाड़ा से गतिमान हुए। पुनः धीरे-धीरे गर्मी का प्रकोप वातावरण में दिखाई दे रहा था, किन्तु प्राकृतिक अनुकूलता और प्रतिकूलता के प्रति समभाव रखने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अगले गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। मार्ग में अनेक स्थानों पर लोगों को मानवता के मसीहा के दर्शन और मंगल आशीष का लाभ प्राप्त हो रहा था। करीब बारह किलोमीटर का विहार सम्पन्न कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी पाटण में पधारे तो पटाणवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी हेमचन्द्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में पधारे तो विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर आदि विश्वविद्यालय परिवार ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
विश्वविद्यालय परिसर में प्रवास स्थल से कुछ दूरी पर स्थित श्री अटलबिहारी वाजपेयी कन्वेशन हॉल में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा और ज्ञान के बिना भीतर में अंधकार बना रहता है। एक सूत्र में कहा गया है कि अज्ञान एक कष्ट है। अज्ञान की चेतना से आवृत व्यक्ति जान ही नहीं पाता कि उसके लिए क्या हितकर और क्या अहितकर है। इसलिए अज्ञान त्याज्य है। अज्ञान से आदमी ज्ञान की ओर बढ़े। असतो मा सद्गमय, तमसो ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मांमृत्यम्गमय- अंधकार से प्रकाश से की ओर, असत् से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाने की प्रार्थना की जाती है। आज अज्ञान को दूर करने के लिए कितने-कितने प्रयास किए जा रहे हैं। विद्यालय, उच्च विद्यालय, कॉलेज, महाविद्यालय और कहीं-कहीं विश्वविद्यालय और कहीं मान्य विश्वविद्यालय भी उपलब्ध हैं। शिक्षा को लेकर लोगों में बहुत जागरूकता देखने को मिलती है। माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए देश से बाहर भी भेजते हैं।
शिक्षा प्राप्ति का एक सामान्य लक्ष्य तो कमाई करना होता है। हालांकि यह गलत भी नहीं है। शिक्षा से अर्थाजन की क्षमता का विकास हो सकता है, लेकिन शिक्षा मात्र अर्थाजन तक ही नहीं रहे, ज्ञान से आदमी एकाग्रचित्त बनकर अपनी चंचलता को कम किया जा सकता है। शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य स्वयं सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करूंगा और संभव सके तो दूसरों को भी उस दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास होना चाहिए। ज्ञान के पांच प्रकार बताए गए हैं। शिक्षा से अतिन्द्रिय ज्ञान की दिशा में भी आगे बढ़ा जा सकता है।
आज हमारा हेमचन्द्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में आए हैं। आचार्य हेमचन्द्र को कलिकाल सर्वज्ञ के रूप में उपमित किया गया। उनका ज्ञान विशिष्ट कोटि का रहा। संस्कृत भाषा में उनके अनेक ग्रंथ आदि भी हैं। ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम होता है, तो नई चीज भी सामने आ सकती है। तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्यश्री श्रीमज्जयाचार्यजी ने में ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम था। विद्यार्थी में ज्ञान का अहंकार नहीं होना चाहिए। ज्ञान के प्रति अच्छे सम्मान का भाव होना चाहिए। विद्यार्थी को प्रमादी नहीं होना चाहिए और सदा स्वाध्याय में रत रहने का प्रयास होना चाहिए। विद्यार्थी को परिश्रमी भी होना चाहिए। विद्यार्थी को आलस्य में नहीं जाना चाहिए। गुस्सा, अहंकार, प्रमाद, रोग और आलस्य- ये पांच बाधाएं शिक्षा प्राप्ति में बाधक बनती हैं। इनसे विद्यार्थी बचने का और अपने ज्ञान का अच्छा विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी आज से 23 वर्ष पूर्व पाटण में पधारे थे। तेईस वर्ष बाद मेरा आना हुआ है। यहां शिक्षा के साथ विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास होना चाहिए। पाटरण के समाज में धार्मिक जागृति पुष्ट रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। हेमचन्द्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. किशोरभाई पोरिया ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। रजिस्ट्रार डॉ. रोहितभाई देसाई ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ समाज की ओर से श्री मुकेशभाई शाह दोसी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। बालक काव्य ने अपनी प्रस्तुति दी।